SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५३ प्रत्यक्षलक्षण-विमर्श अपेक्षा से अर्थ में स्थूलता अभिप्रेत है, अन्यथा सूक्ष्म रूपादि का भी प्रत्यक्ष नहीं होगा। स्थूलार्थग्राहकता अनुमान प्रमाण में भी पाई जाती है, अतः अयोगिप्रत्यक्ष प्रमाण की अनुमान प्रमाण में होनेवाली अतिव्याप्ति के निराकरणार्थ लक्षण में इन्द्रियार्थसंनिकर्ष का समावेश किया है। अनुमान प्रमाण भी यद्यपि सम्बन्धविशेष के द्वारा ही साध्यधर्म की प्रतिपत्ति कराता है, तथापि अनुमितिस्थल में इन्द्रिय और साध्यविषय का सम्बन्ध स्थापित नहीं होता । अत: वहां अतिव्याप्ति नहीं है। द्रव्यप्रत्यक्षनिरूपण प्रत्यक्ष प्रमाण इन्द्रिय और अर्थ के सम्बन्धविशेष के द्वारा स्थूल अर्थ का ग्राहक होता है, अतः जिन सम्बन्धों से इन्द्रियां अर्थ ग्रहण करती हैं, वे सम्बन्ध संयोग, संयुक्तसमवाय आदि हैं । चक्षु तथा त्वम् इन्द्रिय संयोगसम्बन्ध से घटादि स्थूल द्रषों को ग्रहण करतो हैं । अर्थ को स्थूलता परमाणुसमूह से भिन्न अवयवी की सत्ता मानने पर उत्पन्न हो सकती है, अतः अवयत्री घटादि, अअयवरूपपरमाणुः समूह से भिन्न है, यह बतलाने के लिये टादि पद दिया गया है। 'आदि' का ग्रहण सामान्य जनों के इन्दिय के विषयभूत समस्त अश्यविसमुदाय का संग्रह करने के लिये है । घटादि अवयत्री का रूपादि से अर्थान्तरभाव ज्ञापित करने के लिये द्रव्य पद दिया गया है। अर्थात् इन्द्रिय के सम्बन्ध और असम्बन्ध से 'घटोऽयम्' इत्याकारक अवय वेविषयक ज्ञान का भाव व अभाव सबको होता है, जो रूपादिज्ञान से विलक्षण है। इस प्रकार घटादि का रूपा द से भिन्न रूप में ग्रहण प्रत्यक्ष से ही हो जाता है । घटादिगत जाति तथा गुणादि का प्रत्यक्ष ___ चक्षुरिन्द्रिय से संयुक्त घटादि व्यों में समवेत अर्थात् समवाय सम्बन्ध से वर्तमान घटत्वादि सामान्यों, संख्या, परिमाण, पृथक्त्व, संयोगविभाग, परत्व, अपरत्व, द्रवत्व, स्नेह, वेग इन गुणों तथा कर्मो का चक्षु द्वारा संयुक्तसमवाय सम्बध से चाक्षुष प्रत्यक्ष होता है। इसी प्रकार द्रव्य के सगिन्द्रिय से संयुक्त होने पर त्वक्संयुक्त घटादि में समवेत उपर्युक्त घटत्वादि तथा संख्यादि का त्वगिन्द्रिय द्वारा संयुक्तसमकायसम्बन्ध से स्पार्शन प्रत्यक्ष होता है। इस प्रकार घटत्वादि, संख्यादि का ज्ञान दोनों इन्द्रियों से होता है, किन्तु रूप, रूपत्व तथा रूपाभाव का ज्ञान केवल चक्षुरीन्द्रिय से और स्पर्श, स्पर्शत्व, स्पर्शाभाव का ज्ञान केवल त्वगिन्द्रिय से होता है। रूपादि-प्रत्यक्ष नियतेन्द्रिय जन्य है । चक्षु. रसन, घ्राण, स्पर्शन, श्रोत्र तथा मन से युक्तसमवाय सम्बन्ध से क्रमशः रूप रस, गन्ध, स्पर्श, शब्द तथा सुखादि का 1. घटादि अवयवी की रूपादि से अर्थान्तरता का ज्ञापन बौद्धमत की अपेक्षा से किया गया है। बौद्ध गुणों से भिन्न द्रव्य नहीं मानते। उनके मतानुमार पृथिवी पांच गुणों का समूह है। इस प्रकार वे द्रव्य को गुणात्मक मानते है । गुणों से भिन्न कोई द्रव्य नहीं है, जैसाकि प्रज्ञाकरगुप्त ने कहा है-'तथा नास्ति द्रव्यं गुणव्यतिरिक्तम्' (प्रमाणवातिकालंकार, पृ. ५४४)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002638
Book TitleBhasarvagnya ke Nyayasara ka Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshilal Suthar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy