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________________ न्यायसार किया जा सकता, क्योंकि संशय में स्थाणुर्वा पुरुषो वा' इस प्रकार दोनों विकल्प विशेषविषयक हैं, जबकि अनध्यवसाय में विशेषविषयक विकल्प न होकर 'इस वृक्ष की संज्ञा क्या है' ऐसा सामान्यरूप से अनिश्चयात्मक ज्ञान होता है। इसे संशय से पृथक् मानने में निम्नलिखित युक्तियां वैशेषिक ग्रन्थों में प्राप्त होती हैं :१. अनध्यवसाय प्रसिद्धार्थक तथा अप्रसिद्धार्थविषयक होता है, जबकि संशय प्रसिद्धार्थ विषयक ही होता है। २. प्रसिद्धार्थ का ज्ञान होने पर भी अनध्यवसाय देखा जाता है। जैसे. राजा का ज्ञान होने पर भी इस राजा का क्या नाम है', ऐसा नामविषयक अनध्यवसाय होता है। ३. संशय सामान्यधर्मोपलम्भ से उत्पन्न होता है, जबकि अनध्यवसाय सामान्य धर्मोपलम्भ के बिना भी होता है। ४, संशय उभयोल्लेखी होता है, जबकि अनध्यवसाय उभयोल्लेखो विकल्प के बिना भी 'किं संज्ञकोऽयं वृक्षः' इत्यादिरूप से होता है । ५. अनध्यवसाय में किमित्याकारक उल्लेख होता है, जबकि संशय में ऐसा उल्लेख नहीं होता । अतः अनध्यवसाय को संशय से पृथक् मानना चाहिये। भासर्वज्ञ ने वैशेषिक मत को निराकरण करते हुए ऊह की तरह अनध्यवसाय का भी संशय में अन्तर्भाव बतलाया है। उनका कथन है कि अनध्यवसाय उदाहरण 'किं संज्ञकोऽयं वृक्षः' प्रस्तुत किया गया है, वहां उस पुरोदृश्यमान पदार्थ को वृक्ष इस सामान्य संज्ञा के अतिरिक्त आम्र, पनस, आमलकादि में से कोई विशेष संज्ञा भी है। उन विशेष संज्ञाओं में से इस वृक्ष में कौनसी विशेष संज्ञा है, उसका ज्ञान न होने से तद्विषयक सन्देह होता है और उसी संशय को 'किसंज्ञकोऽयं वृक्षः?' इस रूप से व्यक्त किया गया है । पदार्थद्वय विषयक संशय में 'स्थाणुर्वां पुरुषो वा' इस रूप से विशेष विषय का उल्लेख संभव होने पर भो अनेककोटिक संशय में विशेषविषयक उरलेख संभव न होने से वहां सामान्यतः 'किमिदम्' इस प्रकार का ही उल्लेख किया गया है । जैसे, हजारों गायों के अधिपति को उन गायों की भद्रा, नन्दा आदि संज्ञाओ का ज्ञान होने पर भी 'तुम्हारी एक गाय ब्याई है' यह कहने पर 'कतमा गौः प्रसूता' अर्थात् कौनसी गाय ब्याई है, इत्याकारक ही संशय होता है, न कि भदा व्याई है या नन्दा इत्यादि विशेष विकल्पोल्लेखी संशय ।' अनध्यवसाय के सम्बन्ध में प्रशस्तपाद और व्योमशिवाचार्य के कथन का खण्डन करते हुए भासर्वज्ञ ने कहा है-'एतेन व्यासंगादर्थित्वाच्च इषुकारादीनामनध्यवसायः संशयान्तर्भावितो द्रष्टव्यः ।' 'स्थाणुर्वा पुरुषो वा' इत्याकारक 1. गौः प्रस्तेति गोपालसामान्यवचनश्रुतेः । ___ कतमा गौः प्रसूतेति सन्देह इति लौकिका. न्यायमुक्तावलो, प्रथम भाग, पृ. २५. 2. न्यायभूषण, पृ. २३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002638
Book TitleBhasarvagnya ke Nyayasara ka Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshilal Suthar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size14 MB
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