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________________ २० न्यायसार भी खण्डन इसमें है। उनके प्रति भासवंज्ञाचार्य के कटाक्षपूर्ण आक्षेपो के कतिपय उद्धरण यहां निदर्शनार्थ प्रस्तुत हैं_ (१) "तस्मादिमें सौगताः शून्यताभिधानेनासारतां प्रदर्श्य बुद्धाय देयम्, धर्माय देयम्, संघाय देयम्, इत्येवं लोकान् प्रतार्य मिष्टान्नपानाद्युपभोगं कुर्वन्तः पूर्वसंस्काराविशेषेऽपि अमेध्यभक्षणादिकं परिहरन्तः चक्रभ्रमणवदस्माकं पूर्वसंस्कारादेव प्रवृत्तिरित्येवं ब्रुवाणाश्च धूततामेवात्मनः प्रकटयन्तीति ।" ___(२) "को हि जिनस्यातिशयो यः खरोष्ट्रादौ नास्त्येव १ को वा खरोष्ट्रादेनिकृष्ट भावो यो नास्त्येव जिने यतः खरोष्ट्रादिपरिहारेण स एवोपास्यते ?" (३) "नाप्रत्यक्ष प्रमाणमस्ति इति अभ्युपगम्य परप्रत्यायनार्थ शास्त्रं प्रणयन् वाक्यं वोच्चारयन् स्वामेव प्रवृत्ति स्ववाचा विडम्बयतीत्यहो भद्रं पाण्डित्यमात्मनः प्रकटितवानिति ।"3 परवर्ती औत तथा अौत दर्शन-वाङ्मय में 'न्यायभूषण' विशेष चर्चा का विषय रहा है । ज्ञानश्री, रत्नकीर्ति, वादिदेव सूरि आदि दार्शनिक पूरी शक्ति लगाकर इसके खण्डन में प्रवृत्त हुए । 1. न्यायभूषण, पृ. १५२. 2. वही, पृ. ५५७. 3. वही, पृ. ८०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002638
Book TitleBhasarvagnya ke Nyayasara ka Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshilal Suthar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size14 MB
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