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________________ परिचय सोलह पदार्थों के साथ वैशेषिक दर्शन के द्रव्यादि पदार्थ भी वर्णित होते हैं, परन्तु स्वतन्त्ररूप से नहीं, अपितु उनका प्रमेय में अन्तर्भाव कर दिया गया है। (३) तीसरे प्रकार के वे प्रकरण ग्रन्थ हैं जो मुख्यत वैशेषिक के ग्रन्थ हैं, परन्तु न्याय के प्रमाण पदार्थ का पूर्ण रूप से उनमें समावेश कर दिया गया है। (४) चोथे प्रकार के वे प्रकरणग्रन्थ हैं जिनमें न्याय और वैशेषिक दर्शन के कतिपय विषयोंका उन दर्शनों की शैली से पृथक्-पृथक् वर्णन किया गया है । प्रकरण ग्रन्थों की उपयुक्त चतुम्कोटि में आचार्य भासर्वज्ञ का न्याय सार प्रथम कोटे के अन्तर्गत आता है । इसमें प्रमाण पदार्थ का प्रधान रूपसे प्रमाण परिच्छेदों में यथाप्रसंग प्रतिपादन किया गया है। भारतीय न्यायशास्त्र के मध्यकालीन युग में बौद्ध और जैन न्याय में क्रमशः दिङ्नाग तथा सिद्धसेन दिवाकर ने उस ग्रन्थ शैलीका सम्प्रवर्तन किया था । परवर्तीकाल में बौद्ध तथा जैन न्यायशास्त्र में इस शैली के अनुसार अनेक प्रन्थ लिखे गये। सूत्रानुसारी व्याख्यापद्धति का अनुसरण करनेवाले कर, वाचस्पति आदि ब्राह्मण नैयायिक इस शैली से प्रभावित नहीं हुए । ब्राह्मण नैयायिकों में इस शैली से सर्वप्रथम प्रभावित होनेवाले आचार्य भासर्वज्ञ थे, जिन्होंने तदनुसार न्यायसार की रचना की ।' भासर्वज्ञ ने न्यायसार में केवल प्रमाणों का निरूपण किया है, प्रो. विद्याभूषण के इस कथन पर आपत्ति उठाते हुए म. म. गोपीनाथ कविराज ने उसे निराधार बतलाया है, क्योंकि पुस्तक (न्यायसार) के उत्तरभाग में प्रमेयों का निरूपण किया गया है। जैसा कि अभी कहा जा चुका भासन ने बौद्ध और जैन न्यायप्रन्थों की शैली अपनाकर-प्रमाण पदार्थ को प्रधानता दी, परन्तु उन्होंने न्यायशास्त्र के अन्य पदार्थो का भी न्यायसार के प्रमाण परिच्छेदों में प्रतिपादन किया है। स्वयं आचार्य भासर्वज्ञ ने न्यायसार के मंगल-लोक के "शिशुप्रबोघाय मयाभिधास्यते । प्रमाणतभेदतदन्यलक्षणम् ॥" 1 (A)..and there is probably only one Hindu work of importance on Nyaya in the Buddhist style namely Nyāyasāra of Bhasarvajina. -Dasgupta S. N., A History of Indian Philoso phy, Vol. I, p. 309, (B) Among the Brahmans there was only one person who imbibed the influence of the Buddhist and Jain Logicians. This person was Bhasarvajña, the celebrated author of Nyāyasära. -Vidyabhusana's Introduction to Nyayasara, p. 2. 2. न्यायसार, प्रस्तावना, प्र. २. 3. Gleanings from the History and Bibliography of the Nyāya-vaiseşika Literature. p. 2. भान्या-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002638
Book TitleBhasarvagnya ke Nyayasara ka Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshilal Suthar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size14 MB
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