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________________ मोक्षस्वरूप के विषय में दार्शनिकों में मतभेद है । अधिकांश दार्शनिक, जिनमें वैशेषिक तथा भाष्यकारादि नैयायिक, सांख्य तथा योग दार्शनिक हैं, एकान्ततः दुःखनिवृत्ति को ही मोक्ष स्वीकार करते हैं । वेदान्ती तथा भासर्वज्ञ' और उनके मतानुयायी नैयायिक नित्यसुखाभिव्यक्ति को मोक्ष मानते हुए मोक्ष दशा में आत्यन्तिक दुःखनिवृत्ति भी स्वीकार करते हैं । भासर्वज्ञ ने मोक्ष का निरूपण करते हुए पूर्वपक्ष के रूप में 'एके' पद द्वारा वैशेषिकमत' का उल्लेख करते हुए कहा है कि उनके अनुसार संहारावस्था में आत्ममनःसंयोगजन्य सभी विशेष गुणों का उच्छेद हो जाने पर आकाश की तरह आत्मा का सर्वदा अवस्थान ही मोक्ष है । " इस कथन से स्पष्ट है कि मोक्षदशा में दुःखनिवृत्ति की तरह सुख की निवृत्ति भी उनको अभिप्रेत है, क्योंकि सुख और दुःख दोनों अविनाभूत है, एक को छोड़कर दूसरे का भोग नहीं किया जा सकता । विवेकी पुरुषों की प्रवृत्ति सुख के लिये ही देखी जाती है और मोक्ष में सुख का अभाव मानने पर उनकी प्रवृत्ति नहीं होगी - यह आशंका निरर्थक है; क्योंकि कण्टकादिजन्य दुःखाभाव के लिये भी प्रेक्षावान् पुरुषों की प्रवृत्ति लोक में देखी जाती है तथा अध्यात्मशास्त्र विषयी पुरुषों के लिये नहीं है, जिससे कि सुखादिरूप विषय के अभाव में मनुष्य की प्रवृत्ति न हो । जो पुरुष दुखों से अत्यन्त निर्विण्ण हो चुके हैं, उनके दुःखोच्छेद के लिये ही अध्यात्मशास्त्र की प्रवृत्ति है । इसीलिये सांख्यकारिका में भी कहा हैं अष्टम विमर्श अपवर्गनिरूपण दुःखत्रयाभिघाताज्जिज्ञासा तदपघातके हेतौ । Esc साऽपार्था चैन्नैकान्तत्ततोऽभावात् ॥ * अर्थात् विवेकख्याति के द्वारा दुःखत्रय के आत्यन्तिक तथा ऐकान्तिक अभाव के लिये ही विवेकख्याति के जनक सांख्यशास्त्रनिरूपित तत्त्वों के सम्यग्ज्ञान के लिये शास्त्र में प्रवृत्ति होती है । 1. न्यायसारे पुनरेवं नित्यसंवेद्यमानेन सुखेन विशिष्टात्यन्तिकी दुःखनिवृत्ति: पुरुषस्य मोक्षः । - षड्दर्शनसमुच्चयवृत्ति, पृ. ९३-९४ 2. तदभावे संयोगाभावोऽप्रादुर्भावश्च मोक्षः । - वैशेषिकसूत्र, ५/२/१८ 3. एके तावद् वर्णयन्ति - समस्तात्सविशेषगुणोच्छेदे संहाराम्यायामाकाशवदात्मनोऽत्यन्तावन्यायसार, पृ. ३९-४० स्थानं माक्ष इति । 4. सांख्यसारिका, १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002638
Book TitleBhasarvagnya ke Nyayasara ka Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshilal Suthar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size14 MB
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