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न्यायसार
जन्मादि द्वारा पुनः पुनः संमारप्राप्ति कराने वाले हैं, अतः सूत्रोक्त इन दोषों का ही क्लेश का कारण होने से क्लेश पद से अभिधान किया है। इन क्लेशों की निवृत्ति उपयुक्त कियायोग के द्वारा हो होती है । इसके अतिरिक्त क्लेशक्षय तथा समाधिप्रारित के लिये योगसूत्रोत यमनियमदि आठ अंगों को भी आवश्यक माना है।
1. समासतो रागद्वेषमोहाः क्लेशा: समाधिप्रत्यनीकत्वेन संसारापत्तिद्वारेण क्लेशहेतुत्वात् ।
-न्यायसार, १.३८ 2. यथा च कियायोगः क्लेशक्षयहेतुस्तथा योगांगान्यपि अतस्तान्यपि अतिप्रयत्नेन अनुष्ठेयानि ।
-न्यायभूषण, पृ. ७८७
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