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________________ परिचय यहां प्रस्तुत किये जा रहे है : १. "लक्षणस्य व्यतिरेकिहेतुत्यं प्रतिपादितं वाचस्पतिमिश्रेण-'लक्षणं' नाम व्यतिरेकिहेतुवचनम् (ता टी. पृ. ९८) तदेतदुपन्यस्य न्यायभूषणे ‘लक्षणस्यापि निश्चय. साधनत्वेन प्रमाणत्वात् । अथ लक्षणं किं प्रमाणपर्याय उत प्रत्यक्षादीनामन्यतमात्, तदर्थान्तरं का ? केवलव्यतिरेकीत्येके (न्यायभूषण, पृ. ९) ।। २. 'संशयलक्षणे 'अनवधारणात्मकश्च प्रत्ययश्च' (न्या.वा. पू. १२) इति वार्तिकोक्तस्य विरोधं मिश्र पर्यहार्षीत् -परमार्थतस्तु प्रत्ययशब्दो ज्ञानप यः, ज्ञानवं तु सामान्यं संशयादिष्वप्यस्तीति न विरोध इति' (ता.टी , पृ २४४) । तन्मनसि कृत्वा प्रोक्तम 'अनवसाधारणज्ञानं संशयः (न्या. सा. पृ. १२) । तन्न तमेव विरोधमुद्भाव्य तदेव समाधानमभ्यधाद् भासर्वज्ञः –'अनवधारणं च तज्ञानं चेति व्याघातान्न युक्त मति चेन् न; गोश दादिवज्जातिनिमित्तत्वाज्ञ शब्दश्या...सा च ज्ञानवजातिनिश्चयानिश्च यस्वभावासु व्यक्तिषु वर्तते' (न्या भू. पृ १२) ।' भासर्वज्ञ वाचस्पति से पूर्ववर्ती प्रो. दिनेशचन्द्र भट्टाचार्य आदि विद्वानोंने वाचस्पति के वम्बंकवसुवत्सर को ८९८ शक संवत् माना है । तदनुसार भासर्वज्ञ वाचस्पति के ज्येष्ठ समसामयिक सिद्ध होते हैं । इन विद्वानों के मुख्य तर्क इस प्रकार हैं १. काश्भीर नरेश शंकर वर्मा (८८२-९०२ ई.) के समकालीन जयन्त का काल सुनिचित है। तात्पर्यपरिशुद्धि में उदयन ने लिखा है कि वाचस्पति ने उपमानफल के सम्बन्ध में विप्रतिपति के निराकरणार्थ जयन्तमत को उद्धृत किया है। इससे यह प्रमाणित है कि बाचस्पति जयन्त के परवर्ती थे और ऐसी स्थिति में वाचस्पति का काल ८४१ इ. नहीं हो सकता । अतः ८९८ शक (संवत् ९७६ इ) ही मानना होगा । तदनुसार वाचस्पति की अपेक्षा कुछ भासर्वज्ञ पूर्ववतो हो जाते हैं। (२) यद्यपि उदयन की लक्षणावली का रचनाकाल ६०६ (तर्काम्बराङ्क) शक संवत् एकमात्र सरस्वतीभवन की हस्तलिपि में उल्लिखित है और उदयन ने तात्पर्यपरिशद्धि में तात्पर्यटीका के पाठान्तरों का विवेचन किया है। वाचस्पति (९७६ ई०) को उदयन (९८४ ई) के समकालीन मानने पर यह सम्भव नहीं होता । तथापि तर्कस्वराङ्क पाठ होना चाहिये । ऐसा मानने पर ७० वर्ष और प्राप्त हो जाते हैं। इस प्रकार प्रो० भट्टाचार्यने उदयन का जन्मकाल लगभग १०२५ ई. तथा उनका कार्यकाल 1. वही, पृ. १०. 2. वही, पृ. १०, ११. 3. अत्रोपमानस्य फले विप्रतिपद्यमानान् प्रति साशंक जरन्नैयायिक जयन्त प्रभृतीनां परिहारमाह ...। -तात्पर्यशुद्ध, - 11६. 4. Bhattacharya, D, C. : History of Navya-Nyaya in Mithila, P. 2. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002638
Book TitleBhasarvagnya ke Nyayasara ka Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshilal Suthar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size14 MB
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