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न्यायसार
वाचस्पति भासर्वज्ञ के पूर्ववर्ती प्रो० दासगुप्त', महामहोपाध्याय सतीशचन्द्र विद्याभूषण' प्रो० राधाकृष्णन्। म० म० गोपीनाथ कविराज, प्रो० सर्यनारायण शास्त्री तथा प्रो० कुन्हन राजा,, प्रो० सात्काड़ मुखोपाध्याय, डें। धर्मेन्द्र नाथ शास्त्री' आदि विद्वानों ने वाचस्पति मिश्र द्वारा उल्लिखित वत्सर को विक्रम संवत् माना है और तदनुसार ८४१ इ प्राप्त होता है । भासर्वज्ञ का काल दसवीं शताब्दी निश्चित है, अतः इन विद्वानों के अनुसार भासर्व वाचस्पति से परवती सिद्ध होते हैं।
इन विद्वानों का मुख्य तर्क यह है कि उदयन ने लक्षणावली में 'तर्काम्बरांक' ऐसा निर्देश कर लक्षगावली का रचनाकाल ९०६ शक संवत बतलाया है। वाचस्पति के वस्त्रंकत्रसुवत्सर को ८९८ शक संवत् मानने पर दोनों समकालीन हो जाते हैं, जो कथमपि संभव नहीं । क्योंकि उदयनाचार्य ने वाचस्पति मिश्र की न्यायवार्तिक. तात्पर्यटीका पर परिशुद्धि टीका लिखी है, अ: दोनों के बीच पर्याप्त समय का अन्तराल होना चाहिए ।
(२) ८९८ विक्रम संवत् मानने पर वाचस्पति का परिवती बौद्ध रत्नकीर्ति उदयन से लगभग १०० वर्ष प्राचीन हो जायेगा। उदयन ने बौद्ध पर आ प्रहार किया, पण्डितों में प्रचलित इस मान्यता के भी यह अनुकूल पड़ता है ।10
(३) स्वामी योगीन्द्रानन्द का कथन है कि यद्यपि भासर्वज्ञ ने वाचस्पति का नामोल्लेख नहीं किया है, तथापि उनके मतकी चर्चा की है। अपनी इस मान्यता की सम्पुष्टि में स्वामीजो ने न्यायभूषण को भूमिका में न्यायवार्तिकतात्पर्यटीका और न्यायभषण दोनों से कतिपय समानविषयक उद्धरण दिये हैं।11 निदशेन
1. A History of Indian Philosophy, Vol. I, P. 307. 2. A History of Indian Logic, P. 133. 3. Indian Philosophy, Vol. II, p. 40. 4. Gleanings from the History and Bibliography of the Nyāya-Vaise şika . Literature, P. 14. 5. The Bhāmati of Vacaspati, Introduction, P. ix. 6. The Buddhist Philosophy of Universal Flux, P. 33. 7. भारतीय दर्शनशास्त्र-न्यायवैशेषिक, पृ. ११९, १२०. 8. ताम्बरांक मितेष्वतीतेषु शकास्ततः ।
वर्षेषदयनश्च के सुबोधां लक्षावलीम् ॥-लक्षणावली, अंतिम श्लोक. 9. The Bhamati of Vacaspati, Introduction, P. ix. 10. The Buddhist Philosophy of Universal Flux, P. 33. 11. न्यायभूषण, प्राग्बन्ध, पृ. १०, ११.
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