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परिचय
५ भासर्वज्ञ ने अनेक स्थलों पर जयन्त के मतवादों का अनुवाद किया है ।। उदाहरणार्थ एक प्रस्तुत है।
'यथा बाह्यकेलिप्रदेशादाबूलत्वविशिष्टधर्मिदर्शनात् पुरुषेणानेन भवितव्यमिति प्रत्ययः ।1
'यथा बाह्यालिप्रदेशे पुरुषेणानेन भवितव्यमित्यूहः ।। भासर्वज्ञ ने जयन्त के मतवादों का अनुवाद ही नहीं किया है, अपितु ऐसा प्रतीत होता है कि निराकरण भी किया है । जैसे-'तत्पूर्वक मत्यादि, अनुमानमिति लक्ष्य. निर्देशः, तत्पूर्वक मेति लक्षणम, 5 इस वार्तिककारादि तथा जयन्तमत का निराकरण करते हुए भासर्वज्ञ ने कहा है- ' अत्र तत्पूर्वकमित्येतावदेवानुमानलक्षणमिति न बुध्यामहे।'
६. भासर्वज्ञने जयन्ताभिमत सामग्रीकारणतावाद को उद्धृत किया है, इससे भी भासर्वज्ञकी परिवर्तिता सिद्ध होती है।
वाचस्पति और भासर्वज्ञ का पौर्वापर्य भासर्वज्ञ वाचस्पति के पूर्ववर्ती थे या परवर्ती, यह विवादास्पद विषय है। इस विषय को लेकर दर्शनेतिहासविदों में दो मान्यताएं हैं । वाचस्पति मिश्र द्वारा 'न्यायसूचीनिबन्ध' में उल्लिखित 'वस्वंकवसुवत्सरे (८९८) में वत्सर को कतिपय विद्वान शक संवत् मानते हैं और कुछ विक्रम संवत् । वस्वंकवसुवत्सर के बारे में इन दो मान्यताओं के कारण वाचस्पति के काल को लेकर दो मान्यताएं प्रचलित हैं। इन दो मान्यताओं तथा अन्य प्रमाणों के आधार पर भासर्वज्ञ और वाचस्पति के पूर्वापरकालवर्तित्व के विषय में भी दो मत प्रचलित हैं। परवर्ती दर्शनेतिहासविदों के शोध के अनुसार वाचस्पति भासवज्ञ के परवतीं हैं, परन्तु अभी तक इस विषय में वे एक सुस्थिर मान्यता नहीं बना पाये हैं । अतः दोनों मान्यताओं का यहां संक्षेप से अलग अलग उल्लेख किया जा रहा है
1. वही, पृ. १४५. 2. न्यायभूषण, पृ. २०. 3 न्यायमंजरी, पूर्वभाग, पृ. ११३. 4. न्यायभूषण, पृ. १९.. 5. अन्ये तु वैलक्षण्यमात्रेण कारकाणाम् अतिशयानुपपत्ति मन्यमानाः सामग्र्या एव साधकतम
त्वमाहुः ।-न्यायभूषण, पृ. ६०. 6. न्यायसूचीनिबन्धोऽसावकारि सुधियां मुदे ।
श्रीवाचस्पति मिश्रेण वस्वंकवसुबत्सरे ॥-न्यायसूचीनिबन्ध,
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