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________________ आगमप्रमाणनिरूपण १९५ अभाव का प्रमाणान्तरत्वनिराकरण भाह मीमांसक भूतलादि में घटाभवज्ञान के लिये अनुपलब्धि या अभाव नामक पृथक् प्रमाण की सत्ता स्वीकार करते हैं । उनका अभिप्राय यह है कि भूतल में घटाद्यभाव का प्रत्यक्ष उत्पन्न नहीं, क्यों क घटाद्यभात्र की इन्द्रिय के साथ संयोगादि सम्बन्धों की अनुपपत्ति है । अभाव के द्रव्य न होने से उसके साथ चक्षुरिन्द्रय का संयोग सम्बन्ध नहीं बन सकता । अभाव के गुण, कर्म व तद्गत जाति न होने से संयुक्तसमवाय तथा संयुक्तसवेत पमवाय मम्बन्ध भी बन सकते । अभाव के शब्द व शब्दत्वरूप न होने से समवाय तथा समवेतसमवाय सम्बन्ध भी नहीं बनते । विशेष्यविशेषणभाव सम्बन्ध ही नहीं है, क्योंकि सम्बन्ध द्विष्ठ. एक तथा सम्बन्धियों से भिन्न होता है। विशेषण-विशेष्यभाव में विशेषणता विशेषण में व विशेष्यता विशेष्य में ही रहती है। अतः वह द्विष्ठ नहीं है तथा वह दोनों संबंधियों से भिन्न भी नहीं है । अतः इन्द्रिय के साथ अभाव का कोई सम्बन्ध न होने से प्रत्यक्ष प्रमाण द्वारा घटाद्यभाव का ज्ञान नहीं हो सकता। अव्यभिचारी लिंगज्ञान, सादृश्यज्ञान तथा पदज्ञान के अभाव से अनुमानादि प्रमाणों को अभावज्ञान में प्रसक्ति नहो है । अतः परिशेषात् भूतलादि में घटाभावादि के ज्ञान के लिए अनुपलब्धि अर्थात् उपलब्धि के अभाव को पृथक् प्रमाण मानना होगा । इससे भूतल में घटाभावादि का ज्ञान उत्पन्न हो जाता है. क्यों क यदि भूतल में घटाभाव होता, तो भूतल की तरह उसकी भी इन्द्रिय से उपलब्धि होती है । उपलब्धि का अभाव है, अतः भूतल में घटाभाव का निश्चयात्मक ज्ञान हो जाता है। भासर्वज्ञ का कथन है कि भूतलादि में घटाद्यभावज्ञान इन्द्रियरूप प्रत्यक्ष प्रमाण से ही होता है, क्योंकि चझुरादि इन्द्रिय के होने पर ही घटाद्यभावज्ञान होता है, अन्यथा नहीं । अतः घटाद्यभावज्ञान का इन्द्रिय के साथ अन्वयव्यतिरेक होने से इन्द्रिय ही उसमें कारण है। - यदि यह कहा जाय कि इन्द्रिय का अन्वयव्यतिरेक भूतलादिज्ञान में पर्यवसित है न कि अभाव के साथ, तो यह कथन भी युक्त नहीं क्योंकि जैसे घटरूप प्रत्यक्ष स्थल में घटादि आश्रय के साथ विद्यमान इन्द्रिय का सम्बन्ध रूपाद आश्रित के साथ भी माना जाता है, उसी प्रकार घटाभावादि के आधार भूतल में विद्यमान इन्द्रिय सम्बन्ध के तदाश्रित घटाभावादि के साथ भी मानने में कोई बाधा नहीं है। घटाभावादि के साथ इन्द्रिय का संयोग, समवाय या अन्य कोई सम्बन्ध नहीं है और विषय से असम्बद्ध इन्द्रिय विषयग्रहण में असमर्थ है, यह कथन भी तर्क संगत नहीं है, क्योंकि मीमांसकमत में जैसे घटरूपादि का इन्द्रिय के साथ घटरूपादि के प्रत्यक्षरूप कार्य से अनुमेय योग्यतारूप सम्बन्ध है, उसी प्रकार घटाभावादि के प्रत्यक्ष में भी घटाभावादि के प्रत्यक्षरूप कार्य से अनुमेययोग्यता सम्बन्ध इन्द्रिय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002638
Book TitleBhasarvagnya ke Nyayasara ka Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshilal Suthar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size14 MB
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