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न्यायसार
जा चुके हैं, उन्हीं लक्षणों से इनका निग्रहस्थानत्व उपपन्न है। इसीलिये सत्रकार ने कहा है-'हेत्वाभासाश्च यथोक्ताः' ।' इस सत्र में 'च' शब्द अन्य दृष्टान्ताभासादि निग्रहस्थानों का संग्राहक है। निग्रहस्थानों का परिगणन उनकी इयत्ता का निर्धारण करने के लिये नही, अपेतु उदाहरगमात्रप्रदर्शनार्थ है । अतः परिगणित निग्रहस्थानों से अधिक निग्रइत्थान मानने में सूत्रविरोध नहीं है । दुर्व वन, कोलवादनादि भी साध्यसिद्धि में अनुपयोगी होने से निग्रहस्थान ही हैं।'
1. न्यायसूत्र, ५।२।२५ 2. न्यायभूषण, पृ. ३७५
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