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________________ कथानिरूपण तथा छल... १८५ (१९) पर्यनुयोज्योपेक्षण निग्रह का अवसर प्राप्त होने पर प्रतिवादी 'तुम निगृहीत हो ऐसा वादी से नहीं कहता, वहां पर्यनुयोज्योपेक्षणरूप निग्रहस्थान होता है। जैसाकि सूत्रकार ने कहा है-'निग्रहं प्राप्तस्य अनिग्रहः पर्यनुयोज्योपेक्षणम् ।' अर्थात निग्रहोपपत्ति के अवसर पर उसका कथन न करना, उसकी उपेक्षा कर जाना पर्यनुयोज्योपेक्षण निग्रहस्थान है। (२०) निरनुयोज्यानुयोग अदोष में दोष का उद्भावन निरनुयोज्यानुयोग नामक निग्रहस्थान है, जैमाकि सूत्रकार ने कहा है-'अनिग्रहस्थाने निग्रहस्थानाभियोगो निरनुयोज्यानुयोगः'। जैसे, 'सावयवत्व' हेतु के द्वारा पृथ्वी आदि को कार्य सिद्ध करने पर यदि प्रतिपक्षी कहे कि यह हेतु अप्रयोजक हेत्वाभास है, तो मिथ्याभियोग के कारण यह निरनुयोज्या. नुयोग नामक निग्रहस्थान होता है, क्योंकि सावयवत्व हेतु कार्यत्व साध्य को सिद्ध करने में समर्थ है, अपयोजक नहीं । (२१) अपसिद्धान्त किमी सिद्धान्त को स्वीकार कर अनियम से कथा करना अर्थात् स्वीकृतसिद्धान्तविरुद्धकथन अपसिद्धान्त निग्रहस्थान है, जैसाकि सूत्रकार ने कहा है - " स्वसिद्धान्तमभ्युपेत्यानियमातकथाप्रसंगोऽपसिद्धान्तः' ।। जैसे-भीमांसकसिद्धान्त को स्वीकार कर यदि वादी कहता है कि अग्निहोत्र स्वर्ग का साधन है, उस पर यदि प्रतिवादी यह प्रश्न करे कि अग्निहोत्र क्रिया यही नष्ट हो जाती है, वह उत्तरकालभावी स्वर्ग का साधन कैसे हो सकती है? उसके उत्तर में वह कहता है कि क्रिया यद्यपि नष्ट हो गई है. तो भी उससे आराधित परमेश्वर राजादि की तरह स्वर्गादि. रूप फल प्रदान करता है। तो यह उसका उत्तर अपसिद्धान्त नामक निग्रहस्थान से ग्रस्त है, क्योंकि मोमांसादर्शन में ईश्वर की सत्ता नही मानी जाती, अतः वह कैसे प्रदान कर सकता है ? (२२) हेत्वाभास पूर्वोक्त छः हेत्वाभास भी निग्रहस्थान हैं, किन्तु उनको निग्रहस्थान मानने के लिये पृथक् लक्षण मानने की आवश्यकता नहीं है, पहिले जो उनके लक्षण बतलाये 1. न्यायसूत्र, ५।२।२२ 2. ५।२।२१ 3. ५२।२४ न्या-२४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002638
Book TitleBhasarvagnya ke Nyayasara ka Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshilal Suthar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size14 MB
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