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________________ अनुमान प्रमाण १३७ अन्य मत द्वारा धर्मकीर्तिमत संभावित हो सकता है, क्योंकि उनके पूर्ववर्ती ग्रन्थों में सन्दिग्ध पद का प्रयोग प्रायः उपलब्ध नहीं होता और इन आठ भेदों की विवेचनापद्धति, उदाहरणविन्यास आदि भी धर्मकीर्ति के विवेचन के समान ही जान पड़ते हैं।" परन्तु 'न्यायसारविचार' के प्रणेता भट्ट राघव ने 'अन्ये' से 'त्रिलोचनाचार्य' का ग्रहण किया है। उन आठ उदाहरणाभासों का यहां निरूपण किया जा रहा है। . १. सन्दिग्धसाध्य : 'महाराज्यं करिष्यत्ययं सोमयंशोभूतत्वात , विवक्षितराजपुरुषवत् ।' इस अनुमान में विवक्षित राजपुरुष के सोमवंशोभूत होने से उसमें साधन की सत्ता है, किन्तु राज्यकरण के भविष्यत्कालिक होने से उसका उस राजपुरुष में निश्चय नहीं है, अतः यह सन्दिग्ध साध्य उदाहरणाभास है । २. सन्दिग्धसाधन : 'नायं सर्वज्ञो रागादिमत्त्वात् , रथ्यापुरुषवत्' इस अनुमान में रथ्यापुरुष दृष्टान्त में किसी उपाय से असर्वज्ञत्व साध्य का निश्चय होने पर भी रागादिमत्त्व का किसी प्रमाण के अभाव में निश्चय न होने से यह सन्दिग्धसाधन उदाहरणाभास है। ' ३. सन्दिग्धोभय : ___'गमिष्यति स्वर्ग विवक्षितः पुरुषः, समुपार्जितशुक्लधर्मत्वात् , देवदत्तवत् ।' इस अनुमान में देवदत्तरूप दृष्टान्त में समुपार्जितशुक्लधर्मत्वरूप साधन तथा भविष्यत्कालिक स्वर्गगमन के किसी निश्चायक प्रमाण के अभाव में सन्दिग्ध होने से सन्दिग्धोभय (सन्दिग्धसाध्यसाधन) उदाहरणभास है । ४. सन्दिग्धाश्रय: 'नायं सर्वज्ञो बहुवक्तृत्वाद् भविष्यदेवदत्तपुत्रवत् ।' इस अनुमान में भविष्य में होने वाले देवदत्तपुत्र की सत्ता में कोई प्रमाण न होने से उसीके पक्षरूप आश्रय होने से सन्दिग्धाश्रय उदाहरणभास है। __उपर्युक्त चारों अनुमानों में अन्वयव्याप्तिमूलक उदाहरणभास हैं । अतः ये साधर्म्यमूलक उदाहरणभास कहलाते हैं । 1 (अ) भारतीय दर्शन में अनुमान, पृ. ३९९. (ब) Sanghvi, Sukhlal-Advanced Studies in Indian Logic and Metaphysics, p. 107. 2 अनाथा: षडिति ये तु दृष्टान्तदोषद्वारेण आभासा अभिहिता: ते यथा दृष्टान्तदोषनिश्चयात निश्चितास्तया तदोषसन्देहात् सन्दिग्धा इति यत्स्वमतं तस्त्रिलोचनाचार्यसम्मतमित्याहअन्ये तु सन्देहद्वारेण अपरान् अष्टावुदाहरणाभासान् वर्णेयन्ति ।-न्यायसारविचार, पृ.५९. भान्या-१८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002638
Book TitleBhasarvagnya ke Nyayasara ka Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshilal Suthar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size14 MB
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