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________________ १३८ न्यायसार १. सन्दिग्धसाध्याव्यावृत्त : 'यो महाराज्यं न करिष्यति स सोमवंशोभूतोऽपि न भवति यथाऽन्यो राजपुरुष ।' 'अयं महाराज्यं करिष्यति सोमवंशोद्भूतत्वात्' इस अनुमान में जो राज्य नहीं करेगा वह सोमवंशोद्भूत नहीं होगा, जसे अन्य राजपुरुषरूप उदाहरण में राज्य न करने का किसी प्रमाण द्वारा निश्चय न होने से वैधर्म्यमूलक सन्दिग्धसाध्य उदाहरगाभास है अर्थात् सन्दिग्धसाध्य से अव्यावृत्त है । २. सन्दिग्धसाधनाव्यावृत्त : 'यस्तु सर्वज्ञः स रागादिरहितः, यथा समस्तशास्त्राभिज्ञः पुरुषः ।' 'नायं सर्वज्ञो रागादिमत्त्वात् रथ्यापुरुषवत्' इस अनुमान में जो सर्वज्ञ होता है, वह रागादिमान होता है, जैसे समस्तशाखाभिज्ञ पुरुष, इस व्यतिरेकव्याप्तिमूलक सर्वशास्त्राभिज्ञ पुरुषरूप उदाहरण में रागादिमत्त्व साधन को अव्यावृत्ति के प्रमाणाभाव के कारण निश्चित न होने से सन्दिग्धसाधनाव्यावृत्त उदाहरणाभास है। ३. सन्दिग्धोभयाव्यावृत्त : ___ 'यः स्वर्ग न गमिष्यति स समुपार्जितशुक्लधर्मोऽपि न भवति यथा दुस्थः पुरुषः ।' 'अयं स्वर्ग गमिष्यति समुपार्जितशुक्लधर्मत्वात् इस अनुमान में जो स्वर्ग नहीं जायेगा वह समुपार्जित शुक्लधर्मवाला भी नहीं होता, जैसे दुःस्थ पुरुष-इस अदाहरण के व्यतिरेकव्याप्तिमूलक वैधोदाहरण में भविष्यत्कालिक स्वर्गगमनरूप साध्य तथा समुपार्जितशुक्लधर्मत्वरूप साधन दोनों के प्रमाणाभाव से सन्दिग्ध होने के कारण यह सन्दिग्धोभय-साध्यसाधन उदाहरणाभास है। ४. सन्दिग्धाश्रय : 'यः सर्वज्ञः स बहुवक्तापि न भवति यथा भविष्यदेवदत्तपुत्रः ।' 'नायं सर्वज्ञः अवद्यवक्तृत्वात्' इस अनुमान में जो सर्वज्ञ होता है, वह अवद्यवक्ता भी नहीं होता जैसे भविष्यत्कालिक देवदत्तपुत्र, इस व्यतिरेकव्याप्तिमूलक वैधोदाहरण के भविष्यत्कालिक होने से उसके किसी प्रमाण द्वारा निश्चित न होने से यह सन्दिग्धा श्रय उदाहरणाभास है। अन्ये तु' पद के द्वारा भासर्वज्ञ ने इन भेदों में अपनी अरुचि प्रदर्शित की है, क्योंकि उदाहरण में साध्यादि के सन्दिग्ध होने पर भी अन्ततो गत्वा साध्यादिविकलता ही सिद्ध होती है । अतः पूर्वोक्त भेदों से इनको पृथक् मानना उचित नहीं । उपनयनिरूपण पंचावयवोपपन्न अनुमानवाक्य का चतुर्थ अवयव उपनय है। उपनय की महत्ता का प्रतिपादन करते हुए भाष्यकार वात्स्यायनने कहा है-'उपनयं चान्तरेण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002638
Book TitleBhasarvagnya ke Nyayasara ka Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshilal Suthar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size14 MB
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