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________________ अनुमान प्रमाण वचनदोषों की निवृत्ति के लिये सम्यक् शब्द का ग्रहण है।' जैसे अनिन्यं मनोमूर्तस्वात् घटवत्' इस अनुमान में 'घटवत्' दृष्टान्त 'यन्मूर्त तद नत्यम्' इस व्याप्ति का अभिधान करने में असमर्थ है, क्योंकि वति प्रत्यय या तो क्रियासाम्य में या षष्ठयन्त या सप्तम्यन्त से होता है । 'यथा घटः' इत्याकारक दृष्टान्तवचन से 'यन्मूर्त तदनित्यम्' इस व्याप्ति की स्पष्ट प्रतीति हो जाती है । अतः 'घटवत्' इत्याकारक दृष्टान्तवचन को व्याप्ति का अभिधान न करने के कारण उदाहरणाभास कहा है। __उदाहरण दो प्रकार का होता है - साधोदाहरण तथा वैधोदाहरण । न्यायसूत्रकार ने 'साध्यसाधात् तद्विपर्ययाद्वा विपरीतम् ' द्वारा उसके द्वविध्य की सूचना दी है । उदाहरण को निदर्शन शब्द से व्यवहृत करते हुए प्रशस्तपाद ने भी इसके दो प्रकार बतलाये हैं !' अन्वयी दृष्टान्त का कथन साधोदाहरण कहलाता है । जैसे-'अनित्यः शब्दस्तोत्रादिधर्मोपेतत्वात् । यद्यत्तीवादिधर्मोपेतं तत्तदनित्यं दृष्टम्, यथा सुखादि ।' व्यतिरेकमुखेन दृष्टान्त का कथन वैधोदाहरण कहलाता है । जैसे-'यदनित्यं न भवति न तत्तीवादिधर्मोपेतम् यथाकाशम् । सूत्रोक्त उदाहरणलक्षण में 'साध्यसाधर्म्यात्' में पंचमी विभक्ति के प्रयोग पर विचार करते हुए भासर्वज्ञ कहते हैं कि अनित्य दृष्टान्त अन्य कारण से उत्पन्न होते हैं, न कि साध्यसाधर्म्य से और नित्य दृष्टान्त की उत्पत्ति का प्रश्न नहीं उठता । साध्यसाधर्म्य से दृष्टान्त की ज्ञप्ति भी नहीं मानी जा सकती, क्योंकि वह प्रत्यक्ष प्रमाण से अथवा साधनान्तर से ज्ञात होता है । अतः उत्पत्ति व ज्ञप्ति दोनों पक्षों में 'साध्यसाधर्म्यात्' में पंचम्यर्थ अनुपपन्न है। इसका समाधान प्रस्तुत करते हुए भासर्वज्ञ ने कहा है कि सूत्रकार ने यहां दृष्टान्त का विशेष लक्षण दिया है । दृष्टान्त के सामान्य लक्षण का कथन तो 'लौकिकपरोक्षकाणां यस्मिन्नर्थे बुद्धिसाम्यं स दृष्टान्तः' इस सूत्र द्वारा पहले ही बतला दिया गया है। यहां दृष्टान्त के सामान्य लक्षण के अनुवादपूर्वक साधर्म्यदृष्टान्त और वैधर्म्यदृष्टान्त का लक्षण प्रस्तुत किया है । पंचमी का प्रयोग तो परस्पर भेदसिद्धि के लिये किया गयो है । तात्पर्य यह है कि पूर्व्हक्त दृष्टान्त दो प्रकार का है - तदुधर्मभावी (साधर्म्यवान्) और अतद्धर्मभावो (वैधर्म्यवान्) । साधर्म्यदृष्टान्त का वैधर्म्यदृष्टान्त 1. (अ) वही (ब) सम्यगित्यमिधानविशेषणं भिन्न पदम् । तच्चाव्याप्त्यभिधानादेनिरासार्थम् । -न्यायसारपदपञ्चिका, पृ. ४६ 2. प्रशस्तपादभाष्य, पृ. १९७ 3. न्यायमार, पृ. १२ 4. बही 5. न्यायभूषण, पृ. ३२० 6. न्यायसूत्र, १/१/२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002638
Book TitleBhasarvagnya ke Nyayasara ka Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshilal Suthar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size14 MB
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