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________________ न्यायसार इस करण व्युत्पत्ति से करण कारक का परिग्रह होने से उदाहरण वचनात्मक है, क्योंकि करण कारक वचनात्मक होता है, जब के दृष्टान्त अर्थात्मक है। अर्थ और शब्द का सामानाधिकरण्य नहीं हो सकता, अतः न्यायसूत्र में उदाहरण के लक्षण में दृष्टान्त और उदाहरण का सामानाधिकरण्य उचित नहीं है. इस शंका का समाधान करते हुए वार्तिककार ने कहा है कि यहां दृष्टान्त का वचन के विशेषणरूप में उपादान अभप्रेत है । अर्थात दृष्टान्तरूप अर्थ उदाहरण नहीं है, अपितु 'यत्र यत्र धूमस्तत्र तत्र वह्निः यथा महानसे' इत्याकारक दृष्टान्तवचन उदाहरण है । स्वतन्त्र दृष्टान्त उदाहरण नहीं है, इसीलिये वार्तिककार ने सौत्रलक्षण का परिष्कार करते हुए कहा है-'साध्यसाधात् तद्धर्मामावित्वे सति अभिधीयमान इतिः।। अर्थात् वह्निरूप साध्य वाले पर्वतरूप धर्मी में वह्निरूप साध्य वाले महानस का वचन उदाहरण है। वार्तिककार के समाधान का विशदीकरण करते हुए वाचस्पति मिश्र ने भी यही निष्कर्ष प्रस्तुत किया हैं-'तेन तादृशदृष्टान्तेनो ग्लक्षितं तद्विषयं वचनमुदाहरणम् । वार्तिककार के समाधान को ध्यान में रखते हुए भासर्वज्ञाचार्य ने भी उदाहरण का तदनुसार निर्दुष्ट लक्षण किया है-' सम्यग्दृष्टान्ताभिधानमुदाहरणम्' । न्याय पूत्र में दृष्टान्त और उदाहरण के सामानाधिकरण्य के उपपादन के लिए भासर्वज्ञ ने दो समाधान प्रस्तुत किये हैं। प्रथम समाधान वार्तिककार आदि पूर्वाचार्यो की रीति के अनुसार है। अभिधीयमान का अध्याहार करने पर सामानाधिकरण्य हो जाता है अथवा अभिधीयमान के स्थान पर वचन का अध्याहार करके भी सामानाधिकरण्य सम्पन्न किया जा सकता है। द्वितीय समाधान का आशय यह है कि अन्य शास्त्रों में 'दृष्टान्त उदाहरणम्' इस रूप से दृष्टान्त तथा उदाहरण का अभेद-व्यवहार प्रसिद्ध है। इस व्यवहार को उपपत्ति के लिए यहां भी उपचारतः ‘दृष्टान्तः उदाहरणम्' ऐसा कह दिया है। उपचार का प्रयोजन यह है कि दृष्टान्त के गुण-दोषों से ही उदाहरणवाक्य में गुणदोषवत्ता सिद्ध होती है । अवयव अनुमानवाक्य के एकदेश होते हैं और उदाहरण भी अवयव होने के कारण अनुमानवाक्य का एकदेश है, दृष्टान्तरूप अर्थ वाक्य का एकदेश नही हो सकता । अतः दृष्टान्त उदाहरण नहीं, किन्तु महानसादि अर्थरूप दृष्टान्त का वचन ही मुख्यतया उदाहरण है। ___ उदाहरणलक्षण में प्रयुक्त 'सम्यक् विशेषण पर विचार करते हुए भामर्वज्ञ का कथन है कि 'दृष्टान्ताभिधानमुदाहरणम्' यह कहने पर भी उदाहरणाभासों का निराकरण हो जाता है, क्योंकि वे दृष्टान्तवचन नहीं होते, तथापि अव्याप्त्यभिधानादि 1. न्यायवार्तिक, १/१/३६ 2. तात्पर्यटीका, १/१/३६ 3. न्यायसार, पृ. १२ 4. न्यायभूषम, पृ. ३२१ 5. न्यायभूषण, पृ. ३२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only. www.jainelibrary.org
SR No.002638
Book TitleBhasarvagnya ke Nyayasara ka Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshilal Suthar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size14 MB
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