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________________ १२० न्यायसार दूरस्थ पुरुष के द्वारा होती है। अतः शब्दोपलब्धि मे दण्डसंयोगकाल का अतिक्रमण कर जाती है । अर्थात् शब्दनित्यत्वसिद्धि के लिये अपदिश्यमान संयोगव्यङ्ग्य त्व हेतु में विशेषणतया उपात्त संयोगरूप एकदेश शब्दोपलब्धिकाल का अतिक्रमण का जाता है, क्योंकि शब्दोपलब्धिकाल में संयोग नहीं है। अतः यह हेतु कालातीत होने से शब्दनित्यत्व को सिद्ध नहीं कर सकता । वार्तिककार ने भाष्यकारोक्त व्याख्या का ही स्पष्टीकरण किया है। किन्त वाचस्पति मिश्र ने भाष्यकारोक्त व्याख्यान का विवेचन करते हुए कहा है कि जिस अपदिश्यमान हेतु का अर्थैकदेश कालात्यय से युक्त हो, यह भाष्यकर का व्याख्यान स्वपरमतसंश्लिष्ट है अर्थात इस व्याख्यान में स्वमत तथा परमत दोनों का संश्लिष्ट विवेचन है । भाष्यकार द्वारा प्रदत्त उदाहरण परमत व्याख्यानमार है, जिसका विवेचन पहिले किया जा चुका है। स्वमतानुसार व्याख्यान में अर्थशब्द से धर्मविशिष्ट धर्मी का ग्रहण है, क्योंकि अपदिश्यमान हेतु से धर्मविशिष्ट धर्मी की सिद्धि अभिप्रेत है और उसका एकदेश साध्यरूप धर्म है । उसका कार साध्यसन्देहकाल है, क्योंकि अनुमान की प्रवृत्ति सन्दिग्ध अर्थ में ही होती है, निर्णीत अर्थ में नहीं। किन्तु साध्यरूप धर्म का वह संशयकाल बलवान प्रमाण के द्वारा साध्याभाव का निश्चय करा देने से साध्य में सन्देह न रहने से अतिक्रान्त हो जाता है। इस प्रकार भाष्यकार के 'अपदिश्यमानस्य यस्य हेतोरथैकदेशः कालत्ययेन युक्तः स कालात्ययापदिष्टः कालातीतः' इस वचन का अपदिश्यमान हेतु के धर्मविशिष्ट धर्मारूप अर्थ का एकदेश साध्यरूप धर्म प्रत्यक्षादि बलवान् प्रमाण के द्वारा साध्याभाव का निश्चय हो जाने से अपने साध्यसंशयरूप काल का अतिक्रमण कर जाता है, अतः उसे कालात्ययापदिष्ट कहते हैं, यह स्वमतानुसार व्याख्यान है। इसका स्वमतानुसार उदाहरण 'अग्निरनुष्णः द्रव्यत्वात्' है । इस अनुमान में द्रव्यत्व हेतु कालात्ययापदिष्ट है। यहां द्रव्यत्व हेतु से अग्नि में अनुष्णत्व सिद्ध करना है, क्योंकि अग्नि में अनुष्णत्वरूप साध्य का सन्देह है, किन्तु बलवान स्पार्शन प्रत्यक्ष द्वारा अग्नि में उष्णत्वनिश्चय द्वारा अनुष्णत्वसाध्य के सन्देह की निवृत्ति हो जाने से इस हेतु के साध्यसन्देहरूप काल का अतिक्रमण हो चूका है। अतः कालातीत होने से यह हेतु अग्नि में अनुष्णत्व सिद्ध नहीं कर सकता । 'भारतीय दर्शन में अनुमान' में डा. ब्रजनारायण शर्मा का यह कथन कि भाष्यकार और गतिककार ने कालातीत हेतु के काल का निर्धारण नहीं किया और केवल वाचस्पति मिश्र ने इस कालनिर्धारण का प्रयास किया है, समुचित नहीं ! 1. भाष्यकार: सूत्रं म्व परमतश्लिटं व्याचष्टे - कालात्ययेन संशयकालात्ययेन युक्तो यर य हेतोर. पदिश्यमानस्यार्थक देशः...। परमते च कालात्ययेन युक्तो यस्य हेतोरर्थरूप एकदेशो हेतुविशेषण. मिति यावत् . स कालात्ययापदिष्ट इति योजना । परमतेनैव निदर्शनमाह-निदर्शनमिति । ...-.त्यायवार्तिक.तात्पर्यटीका, १/२/९. 2. भारतीय दर्शन में अनुमान, पृ. ३४५, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002638
Book TitleBhasarvagnya ke Nyayasara ka Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshilal Suthar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size14 MB
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