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________________ अनुमान प्रमाण असाधारण तथा अनुपसंहारी में 'पक्षत्रयवृत्तिरनैकान्तिकः' इस अनैकान्तिकलक्षण का समन्वय न होने से 'नित्यः शब्दः श्रावणत्वात् शब्दत्ववत्' इस असाधारण तथा 'सर्वमनित्यं प्रमेयत्वात्' इस अनुपसंहारी हेतु में हेत्वाभासता की उपपत्ति के लिये भासर्वज्ञ ने अनभ्यवसित नामक षष्ठ हेत्वाभास माना है और उसका 'साध्यासाधकः पक्ष एव वृत्तिरनध्यवसितः' यह लक्षण किया है । इस लक्षण का असाधारण तथा अनुपसंहारो दोनों में समन्वय है। क्यों क असाधारण के उदाहरण में हेतु 'श्रावणत्वात्' शब्दमात्र पक्ष में रहता है, अतः वह शब्द में नित्यतारूप साध्य को सिद्ध करने में असमर्थ है, कम से कम पक्षसत्त्व, सपक्षसत्त्व व विपक्षासत्त्व इन तीन रूपों से उपपन्न हेतु ही साध्य का साधक होता है। अनुपसंहारी में प्रमेयत्व हेतु पक्षमात्रवृत्ति है, क्योंकि वहां सर्वमात्र के पक्ष होने से तथा विपक्ष दृष्टान्त के न मिलने से सपक्ष व विपक्ष में हेतु की वृत्तिता नहीं है। अतः ये दोनों अनध्यवसितलक्षणाक्रान्त होने से अनध्यवसित हेत्वाभास हैं । समीक्षा अनध्यवसित का पृथक् हेत्वाभासत्व अनुपपन्न है । क्यों के जैसे हेतु का सपक्ष व विपक्ष दोनों में रहना व्यभिचार है, उसी प्रकार सपक्ष-विपक्ष दोनों से त अर्थात न रहना भी व्यभिचार है। अतः सपक्ष वेपश्नावृत्ति पक्षमात्रवृत्ति असाधारण व अनुपसंहारी भी अनैकान्तिक-लक्षण का समन्वय होने से अनैकान्तिक ही हैं। इस प्रकार हेत्वाभासों की पंचता के उपपन्न होने से सूत्रकार का भी कोई विरोध नहीं होता । अनध्यवसितभेदनिरूपण भासर्वज्ञ ने अनध्यवसित के छः भेद किये हैं। यहां उनका निरूपण किया जा रहा है। १. अविद्यमानसपक्षविषक्ष, पक्षव्यापक : ___ यथा-'सर्वमनित्यं सत्त्वात् । यहां सत्त्व हेतु सर्वरूप पक्ष का व्यापक है, क्योंकि सभी पदार्थ सत् है । सपक्ष व विपक्ष पक्षभिन्न होते हैं, यहां सभी पदार्थो के सर्वरूपपक्षान्तर्गत होने से तभिन्न सपक्ष विपक्ष की सत्ता नहीं है । अतः यह हेतु अविद्यमानसपक्षविपक्ष है । २. अविद्यमानसपक्षविपक्ष, पक्षकदेशवृत्ति : यथा -'सर्वमनित्यं कार्यत्वात्' । इस अनुमान में कार्यत्व हेतु सर्वरूपपक्षान्तर्गत घटपटादि में ही रहता है, आकाशादिद्रव्य तथा सामान्यादि पदार्थो में नहीं रहता, अतः पोकदेशवृत्ति है । कार्यत्व हेतु की अविद्यमानसपक्षविपक्षता पूर्ववत् है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002638
Book TitleBhasarvagnya ke Nyayasara ka Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaneshilal Suthar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size14 MB
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