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(वा० २) अर्थात् लोकसमूह के लिए जो घटना प्रत्यक्ष नहीं है; परन्तु लोक में विज्ञात तो है ही । अब ऐसी कोई घटना को प्रत्यक्ष देखनेवाला वयोवृद्ध आदमी लङ् लकार का प्रयोग कर सकता है । यवनः साकेतम् अरुणत् । कोई वयोवृद्ध ने यह घटना अपने आयुषकाल में कदाचित् प्रत्यक्ष रूप से देखी थी, लेकिन स्मरणपथ में यह बात इतनी प्रकट है कि मानो वह घटना कल ही (ह्यस्तनभूतकाल में ही) घटी है । तो (लुङ् के स्थान पर) लङ् लकार का प्रयोग करता है ॥ भाष्यकार ने यहाँ प्रत्युदाहरण के रूप में कहा है कि - वाक्यप्रयोक्ता वयोवृद्ध ने जब कोई घटना अपने आयुषकाल में देखी नहीं है, तो वह लङ् (या लुङ्) का प्रयोग नहीं कर सकता है । वहाँ तो परोक्ष भूतकाल का, अर्थात् लिट् का ही प्रयोग करना पड़ेगा । यथा – कंसं जघान किल वासुदेवः । = वासुदेव कृष्णने कंस को मारा था । ___ (४) भूते । ३-२-८४ सूत्र के अधिकार में कर्मणि हनः । ३-२-८६ सूत्र से कहा जाता है कि - कर्मवाचक शब्द उपपद में रहते हन् धातु से, 'भूतकाल' अर्थ में -णिनि/ प्रत्यय होता है । यथा - पितृव्यघाती । मातुलघाती । (= चाचा को, या मातुल का घात करनेवाला) । परन्तु यहाँ पर काशिककार एक वार्तिक प्रस्तुत करते है :- कुत्सितग्रहणं कर्तव्यम् ★ । अर्थात् वक्ता जब श्रोता को यह सूचित करना चाहता है कि "अमुक आदमीने कुत्सित कर्म किया है" तब हि (सूत्रकारोक्त) /-णिनि/ प्रत्यय का प्रयोग करना चाहिए । अन्यथा (याने जब कुत्सा प्रदर्शित नहीं करनी है तब) तो निष्ठान्त प्रयोग ही करना चाहिए । यथा – चौरं हतवान् नगररक्षकः । (= नगररक्षक ने चौर को मार डाला ।) यहाँ पर, वक्ताश्रोता के सम्भाषण सन्दर्भ में कुत्सा-प्रदर्शन अभीष्ट है कि नहीं इसको ध्यान में रखते हुए |-णिनि/ अथवा /-क्त–क्तवतु/ प्रत्यय का चयन किया जाता है ।
(४) धातोः कर्मणः समानकर्तकाद् इच्छायां वा । ३-१-७ सूत्र से इच्छा क्रिया के कर्मभूत धातु से परे /-सन्/ प्रत्यय होता है, यदि दोनों क्रिया समानकर्तृक हो तो । यथा - देवदत्तः कर्तुम् इच्छति → = देवदत्तः चिकीर्षति । इस इच्छादर्शक । सन्/ प्रत्यय के विषय में कात्यायन कहते है कि - आशङ्कायाम् अचेतनेषु उपसंख्यानम् । (वा० १२) अर्थात् वक्ता जब किसी क्रिया के विषय में आशङ्का व्यक्त करना चाहता है, तो वहाँ पर भी यह /-सन्/ प्रत्यय प्रवृत्त किया जाता है । यथा - (१) आशङ्के पतिष्यति नद्याः कूलम् → पिपतिषति कूलम् । नदी में बाढ़ को देखकर मुझे आशङ्का होती है कि शायद
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