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________________ [67] किया है । ऐसी चर्चा के प्रसङ्ग में उन्होंने बीच बीच में कात्यायन के वार्तिकों को भी प्रस्तुत किया है; तथा ऐसे वार्तिकों की आवश्यकता है कि नहीं ? इसके लाभालाभ की भी चर्चा स्थान स्थान पर की है । इस तरह से "पाणिनीय–व्याकरण" का कलेवर सूत्र, वार्तिक एवं भाष्य से बना हुआ परिपूर्ण हुआ है । अतः इस व्याकरण को "त्रिमुनि-व्याकरणम्" भी कहा जाता है । 0.2 कात्यायन आदि अनेक वार्तिककार : पाणिनि की 'अष्टाध्यायी' को सुदृढ एवं निर्दुष्ट बनाने के लिए वार्तिकों की प्रमुख रूप से रचना करनेवाले कात्यायन ही है । परन्तु केवल कात्यायन ने ही वार्तिक लिखें हैं ऐसा नहीं है । पतञ्जलि ने कात्यायन के अलावा अन्य वार्तिककारों का भी कहीं कहीं नामोल्लेख किया है । जैसा कि - (१) भारद्वाजीयाः पठन्ति – एकदेशविकृतेषूपसंख्यानम् । (वार्त्तिक–९) । एकदेशविकृतेषूपसंख्यानं कर्तव्यम् ॥ (१-१-५६ इत्यत्र भाष्यम् ।)2 (२) नैतदस्ति प्रयोजनम् - अद्यादित्येव भवितव्यम् । एवं हि सौनागाः पठन्ति । चोऽनर्थकोऽनधिकारादेङ : ॥ (३) परिभाषान्तरमिति च मत्वा क्रोष्ट्रीयाः पठन्ति । नियमादिको गुणवृद्धी भवतो विप्रतिषेधेनेति ॥ (४) शंकरा नाम परिवाजिका, शंकरा शकुनिका तच्छीला च, तस्यामुभयं प्राप्नोति । परत्वाट्टः स्यात् । 1. स्मादिविधिः पुरान्तो यद्यविशेषेण किं कृतं भवति । न स्मपुराद्यतन इति ब्रुवता कात्यायनेनेह ॥ १ ॥ (वार्तिकम्) (भाष्यम्) स्मादिविधिः पुरान्तो यद्यविशेषेण भवति किं वार्तिककार: प्रतिषेधेन करोति, न स्मपुराद्यतन इति ॥ ३-२-११८ इत्यत्र व्याकरण-महाभाष्यम् (Vol. II) Ed. F. Kielhorn, Bhandarkar Oriental Research Institute, Pune, 1965, (p. 121). व्याकरणमहाभाष्यम् (Vol. I) Ed. F. Kielhorn, BORI, Pune, 1962 (p. 136). व्याकरणमहाभाष्यम् (Vol. III), BORI, 1972, (p. 76). 4. व्याकरणमहाभाष्यम् (Vol. I), BORI, 1965 (p. 46). Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002635
Book TitlePaniniya Vyakarana Tantra Artha aur Sambhashana Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantkumar Bhatt
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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