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________________ [66] सम्भाषणसन्दर्भ के पुरस्कर्ता - वार्त्तिककार (तृतीय व्याख्यान) वाक्यकारं वररुचिं भाष्यकारं पतञ्जलिम् । पाणिनि सूत्रकारञ्च प्रणतोऽस्मि मुनित्रयम् ॥ 0.0 भूमिका : 0.1 पाणिनीय व्याकरण के मुनित्रय : यह तो सुविदित ही है कि 'पाणिनीय व्याकरण' में तीन मुनिओं की रचनाओं का समावेश होता है : (१) पाणिनि का 'अष्टाध्यायी' नामक सूत्रपाठ, (२) कात्यायन के वार्तिक, और (३) पतञ्जलि-विरचित 'व्याकरण-महाभाष्य' । पाणिनि द्वारा 'अष्टाध्यायी' की रचना हो जाने के बाद; संस्कृत भाषा के विषय में जो कुछ नया चिन्तन हुआ और भाषा में जो कुछ परिवर्तन आयें उसी के उपलक्ष्य में पाणिनि के सूत्रपाठ में कुछ नयें वार्तिक जोड़ने की आवश्यकता महसूस हुई । अत: कात्यायनने कुछ 'वार्तिक' बनायें । परम्परा के अनुसार कात्यायन का एक दूसरा नाम 'वररुचि' भी था । 'वररुचि' याने (भाषा के विषय में) जिसकी रुचि उत्कृष्ट है ! अतः जनसमुदाय में संस्कृत भाषा का जो प्रयोग हुआ करता था, उसकी वे बारिकी से परीक्षा करने वाले थे । अतः उनका 'वररुचि' ऐसा नाम यथार्थ ही था । पाणिनि ने अपने सूत्रों में जो कुछ भी कहा है, उसका तात्पर्यार्थ क्या है ? जो कहा है इसी को क्या दूसरे ढंग से कहा जा सकता है नहीं ?, सूत्रों में कुछ कहने का छुट गया है, अवशिष्ट रहा है या नहीं ? अथवा, सूत्र में अनवधान से कुछ ठीक तरह से नहीं कहा गया है ? तो सूत्रकार के ऐसे दुरुक्तकथन को निर्दोष बनाने के लिए भी वार्तिक-वचन की आवश्यकता होती है । कात्यायन ने ऐसे विभिन्न दृष्टिकोण को लेकर अनेक वार्तिकों की रचना की है। संक्षेप में कहना चाहें तो पाणिनि की 'अष्टाध्यायी' को शास्त्रीय दृष्टि से सुदृढ़ बनाने के लिए और उत्तरवर्ती काल में भाषाप्रयोग के विषय में जो परिवर्तन आया हुआ था उसी को वचनबद्ध करने लिए कात्यायनने अपनी कलम चलाई है । तत्पश्चात् पतञ्जलि नामके एक तीसरे वैयाकरण आये, जिन्होंने "व्याकरण-महाभाष्य" की रचना की है। उन्होंने पाणिनि के सूत्रों का अर्थप्रदर्शन करने के लिए आक्षेप-प्रतिआक्षेप और दोनों के गुणदोष की चर्चा करने के लिए एक बड़ी रोचक संवाद शैली का आश्रयण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002635
Book TitlePaniniya Vyakarana Tantra Artha aur Sambhashana Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantkumar Bhatt
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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