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[34] में आता है । दूसरे शब्दों में कहे तो - ध्वनि, पद एवं वाक्य (अर्थ के) प्रत्यायक कहे जाते है; और जो 'अर्थ' होता है वह 'प्रत्याय्य' कहा जाता है । अतः यह जानना अतीव आवश्यक है कि भगवान् पाणिनि ने अपने व्याकरणतन्त्र में 'अर्थ' को कहाँ स्थान दिया है। 0.3 अर्थतत्त्व का व्याप एवं व्याकरणतन्त्र का कार्यक्षेत्र :
वाग्व्यवहार की अवस्था में वक्ता जब भी किसी से बातचीत करता है तो स्वर-व्यञ्जन रूप ध्वनियाँ से बने ‘पदों' और (परस्परान्वित) पदों की श्रेणी से बने 'वाक्य' रूप इकाई का प्रयोग करके, अपने मन में रहे हुए विवक्षित अर्थ को, श्रोता के मन में संक्रान्त करता है । इसतरह वाग्व्यवहार में अर्थाभिव्यक्ति ही चरम एवं परम लक्ष्य है । लेकिन भाषा में प्रयुक्त होनेवाले प्रत्येक वाक्य का एक ही अर्थ (वाक्यार्थ) होता है, ऐसा हमेशा नहीं बनता । 'सूर्य अस्त हो गया' इस वाक्य के प्रसङ्गवशात् (प्रकरणवशात्) अनेक अर्थ हो सकते हैं । कहने का तात्पर्य यह है कि, एक ही शब्द के वाच्यार्थ, लक्ष्यार्थ एवं व्यङ्ग्यार्थ रूप विभिन्न अर्थ हो सकते हैं । अब कोई वैयाकरण अपने व्याकरण-तन्त्र में 'अर्थ' को स्थान दे या न दे ?, तथा यदि अर्थ को स्थान दे तो किस स्तर पर - यह विचारणीय प्रश्न है । यह भी विचारणीय है कि वह किस मर्यादा में रह कर (अर्थात् वाच्यार्थ तक ही सीमित रह कर) अर्थ की बात करे ? ___आधुनिक भाषावैज्ञानिकों की दृष्टि से भाषा का यह 'अर्थ' रूप चतुर्थ वर्ण्यविषय सरल नहीं है, बल्कि जटिल है और विस्तृत भी है, क्योंकि अर्थों का विचार करते समय केवल कोशगत अर्थों की मीमांसा करने से बात नहीं बनती: कोशगत अर्थों से बाहर निकल कर सम्भाषण सन्दर्भो को भी ध्यान में लेना आवश्यक होता है । अत: इन आधुनिक भाषावैज्ञानिकों में से कुछ का ऐसा भी प्रस्ताव है कि व्याकरण की चर्चा में 'अर्थ' का समावेश नहीं करना चाहिए; उसके लिए तो स्वतन्त्र रूप से ही विचार करना चाहिए । इस सन्दर्भ में, अब 1. The role of and approach to meaning in language is an important and vexatious
theme of inquiry. Formerly, many American linguistis, in a mood of strong rejection of traditional grammar and influenced by a rather extreme behavioristic position, viewed meaning with suspicion..... some have said that meaning lies totally outside the linguistic system, that it is a sort of net work between cultural systems; some feel that it is to be analyzed as a quite separate problem; others, that it must be constantly taken into consideration.
See : American School of Linguistics : by Eric. P. Hamp., Published in LINGUISTICS; Ed. by Archibdd A. Hill, Voice of America Forum serices; Washington, 1978 (p. 280).
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