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[11] हो, अर्थात् अध्याहृत हो), तब धातु से परे 'मध्यम पुरुष' संज्ञक (सिप् - थस् - थ)
प्रत्ययों की पसंदगी की जाय ।। (ख) अस्मद्युत्तमः । १-४-१०७
सूत्र के अनुसार – तिङ् प्रत्यय से वाच्य जो कारक (प्रकृत उदाहरण में – कर्तृकारक) हो वह कारक का वाचक 'अस्मद्' शब्द (/ हन् धातु के उपपद में हो या न भी हो, अर्थात् अध्याहृत हो), तो धातु से परे 'उत्तम पुरुष' संज्ञक (मिप - वस् – मस्)
प्रत्ययों की पसंदगी की जाय । (ग) शेषे प्रथमः । १-४-१०८
सूत्र के अनुसार - तिङ् प्रत्यय से वाच्य जो कारक (प्रकृत उदाहरण में कर्तृकारकराम) उस कारक का वाचक शब्द यदि 'अस्मद् - युष्मद्' से भिन्न कोई तीसरा ही (यथा- राम रावण को बाण से मारता है) व्यक्ति (वाचक नाम) ( हन् धातु के) उपपद में हो (या न भी हो, अर्थात् अध्याहृत हो), तब धातु से परे 'उत्तम पुरुष' संज्ञक (तिप् - तस् – झि) प्रत्ययों की पसंदगी की जाय ॥
यहाँ ये तीनों सूत्र यह भी कहते हैं कि किसी भी तिङन्त पद की सिद्धि करने के लिए, (प्रकृत में - Vहन् + के पीछे आये हुए 'तिप्' इत्यादि ९ प्रत्ययों में से किसी एक का चयन करने के लिए) यह अनिवार्य है कि हम अपने मन में पूरे वाक्य की पहले ही अवधारणा करलें । यथा – राम रावण को बाण से मारता है । अन्यथा हम यह कैसे निश्चित कर पायेंगे कि हिन् धातु के उत्तर में रखे हुए + 'ल' कार से जो कर्तृकारक वाच्य (विवक्षित) था, वह यहाँ अस्मद् वाच्य है, युष्मद् वाच्य है, या तदुभयभिन्न कोई अन्यव्यक्ति ? कहने का तात्पर्य यह है कि - वाक्य की पूर्व अवधारणा करके रखी गई हो तभी उपर्युक्त तीन सूत्रों से पूछे गये प्रश्नों का उत्तर दिया जा सकेगा कि - तिङ् से वाच्य (कर्तृ) कारक वाचक शब्द ('युष्मद् - अस्मद्' से भिन्न) 'राम' है । अत: Vहन् धातु के पश्चात् 'प्रथम पुरुष' संज्ञक तिप् – तस् – झि प्रत्ययों की पसंदगी की जानी चाहिए ।
राम + रावण को + बाण से + रहन् + तिप् – तस् – झि (कर्तृकारक) (कर्मकारक) (करणकारक)
यहाँ पर तिबादि तीन प्रत्ययों में से किसी एक का चयन करने के लिए कर्तृकारक (राम) की संख्या कितनी है - यह देखा जाता है । प्रस्तुत वाक्य में कर्तृकारक 'राम' एक
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