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________________ [8] एक ही सामान्य प्रत्यय (रूपघटक) से अनेक उपप्रत्ययों (उपरूपघटकों) का निर्माण करके, एक ही अर्थ को व्यक्त करनेवाले भाषा में प्रचलित, अनेक रूप (पद) सिद्ध करके दिखा दिया है । जैसे १ - ए जग भगवते / — ङे/ (चतुर्थी विभक्ति एकवचन का एक सामान्य प्रत्यय) -अम् तुभ्यम् मह्यम् इस प्रकार सप्तविध चतुर्थ्यन्त पद सिद्ध किये हैं । इस तरह से पदनिष्पत्ति की जो तान्त्रिक व्यवस्था पाणिनि द्वारा प्रशस्त की गई है उसमें स्थान्यादेशभाव की प्रयुक्ति महत्त्वपूर्ण है । लेकिन इस से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है वाक्यनिष्पत्ति की प्रयुक्ति । जैसा कि डॉ. एस. डी. जोशीजी (पूर्ण) ने कहा है, पाणिनि ने 'वाक्य' संज्ञाविधायक सूत्र की रचना किये बिना ही, परस्परान्वित ही हो इस तरह के सुबन्त एवं तिङन्त पद की सिद्धि दर्शायी है 12 तो संक्षेप में अब यह देखना होगा कि पाणिनि ने अपने व्याकरण में वाक्यनिष्पत्ति की किस तरह की तान्त्रिक - प्रयुक्ति का आविष्कार किया है : 1. 2 वाक्यनिष्पत्ति की प्रयुक्ति २ -य रामाय वनाय Jain Education International -स्मै सर्वस्मै अस्मै -स्यै सर्वस्यै कस्यै -यै मालायै पाणिनि ने 'कारके' (पा. सू. १-४-२३) का अधिकार करके कर्तृ-कर्मादि विभिन्न कारक संज्ञाओं का विधान किया है । 'कारके' पद सप्तमी में है और वह केवल संज्ञाधिकार न होकर, निमित्ताधिकार (भी) है । एवमेव 'कारके' से विहित संज्ञा अन्वर्थसंज्ञा भी मानी जाती है । अत: 'कारकम् ' शब्द का अर्थ "क्रियान्वयित्वं कारकत्वम्" (जो क्रिया में अन्वित, अर्थात् भागग्रहीता होता है वही 'कारक' कहलाता है) बोधित होता है । इस के परिणाम स्वरूप संसार के किसी 2. Vyākarana - Mahābhāsya (Vibhakyāhnika) Ed. & Trans. by S. D. Joshi & J. A. F. Roodbergen, University of Poona, Pune, 1980 ( Introduction p. i, vi to xv). नौ चम्वै For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002635
Book TitlePaniniya Vyakarana Tantra Artha aur Sambhashana Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVasantkumar Bhatt
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2003
Total Pages98
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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