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जिस वर ने लड़की को जिलाया, वह उसका पिता हुआ और जो उसके साथ जीवित हुआ, वह भाई कहलाया। अतएव लड़की का हकदार वही समझा जायेगा जो अनशन कर रहा था । उसी को लड़की मिलनी चाहिए' ।
पति की परीक्षा किसी ब्राह्मणी के तीन कन्याएँ थीं । उसके मन में विचार आता कि विवाह के पश्चात् वे कैसे सुखी बनेंगी।
- उसने उन्हें सिखा दिया कि विवाह के पश्चात् प्रथम दर्शन में तुम लोग पादप्रहार से पति का स्वागत करना ।
ब्राह्मणी की जेठी कन्या ने अपनी माँ का आदेश पालन किया । आवश्यकचूर्णी २. पृ० ५८ । बेतालपंचविंशतिका की पांचवीं कहानी में हरिवंश मंत्री की कन्या प्रण करती है कि वह किसी ऐसे पुरुष से विवाह करेगी जो वीरता, विद्या अथवा मन्त्र-तन्त्र में सबसे बढ़कर होगा। कन्या का पिता वर की तलाश के लिए प्रस्थान करता है। वह एक ब्राह्मण की खोज करता है जो मन्त्रविद्या में अत्यन्त कुशल है। कन्या का भाई एक विद्वान् ब्राह्मण को अपनी बहन के विवाह के लिए वचन देता है । कन्या की माता अपनी बेटी के लिए बाण चलाने में कुशल एक योद्धा को पसंद करती है।
विवाह की तिथि निश्चित की जाती है । उसी दिन एक राक्षस कन्या का अपहरण कर लेता है।
विद्वान् ब्राह्मण उस स्थान का पता लगाता है जहाँ कन्या रहती है। मांत्रिक वहाँ अपना हवाई-जहाज लेकर पहुँचता है । योद्धा राक्षस को मारकर कन्या को वापिस लाता है।
बेताल प्रश्न करता है कि तीनों में से कन्या किसे दी जानी चाहिए ?
राजा उत्तर देता है कि योद्धा कन्या का हकदार है; वही कन्या को राक्षस से छुड़ा लाया है ।
बेन्फे आदि विद्वानों ने इस कहानी को विश्व साहित्य की कहानी में गर्भित किया है। विटनित्स, द हिस्ट्री आफ इंडियन लिटरेचर, जिल्द ३, भाग १, पृ० ३६९ नोट । अरेबियन नाइट्रस की शहजादे के ढंग को यह कहानी है।
जान हर्टल ने बेतालपंचविंशतिका और पंचतन्त्र के जैन संस्करण में पाई जाने वाली सूक्तियों की अनुक्रमणिका प्रकाशित की है, बी०एस० जी०डब्ल्यू० (१९०२ पृ० १२३) नामक जर्मन पत्रिका में; विण्टरनित्स, द हिस्ट्री आफ इंडियन लिटरेचर, जिल्द ३, भाग, १, पृ. ३६८ फुटनोट। सिंहासनद्वात्रिंशिका और भरटकद्वात्रिंशिका को जैन विद्वानों की रचनाएँ बताया गया है। विंटरनित्स, जैनाज़ इन इंडियन लिटरेचर नामक लेख, इंडियन कल्चर, जुलाई १९३४-अप्रैल १९३५, पृ० १५० ।
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