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________________ गणिका के अनुरोध पर कोई उसका पहना हुआ हार, कोई अर्धहार, कोई कड़ा, और कोई बाजूबंद लेकर जाता। एक बार कोई इभ्यपुत्र गणिका को छोड़कर जाने लगा । गणिका ने उससे भी कुछ लेने को कहा। इभ्यपुत्र रत्नों का पारखी था । उसकी नजर गणिका के पंचरत्नों से जटित बहुमूल्य सोने के पादपीठ की ओर गयी । उसने कहा- यदि कुछ लेना ही है तो अपने पादस्पर्श से मनोहर इस पादपीठ को मुझे दे दो। इसे देखकर मैं तुम्हारी याद कर लिया करूँगा । गणिका--इस जरा-सी चीज को लेकर क्या करोगे? कोई कीमती चीज माँगो। लेकिन इभ्यपुत्र ने पादपीठ ही लेने की इच्छा बतायी । इभ्यपुत्र पादपीठ लेकर चला गया और उसने रत्नविनियोग द्वारा बहुत-सा धन कमाया। ___ एक लड़की के तीन वर ? किसी लड़की के तीन स्थानों से मंगनी आई । एक जगह की मंगनी उसकी माता ने, दूसरी जगह की उसके भाई ने और तीसरी जगह की मंगनी उसके पिता ने ली। विवाह की तिथि निश्चित हो गयी। तीनों स्थानों से बारात आ पहुँची । दुर्भाग्यवश जिस रात को भाँवर पड़ने वाली थी, उस रात को लड़की को साँप ने काट लिया । वह मर गयी। लड़की के तीनों वरों में से एक तो उसी के साथ चिता में जल गया। दूसरे ने अनशन आरंभ कर दिया। तीसरे ने देवाराधना से संजीवन मन्त्र प्राप्त किया। इस मन्त्र से उसने उस लड़की और उसके वर को पुनः उज्जीवित कर दिया । अब तीनों वर उपस्थित होकर लड़की माँगने लगे । बताइए, तीनों में से किसे दी जाये ? वही, पृ. ४ । यहाँ गणिका की तुलना धर्मश्रवण, राजपुत्र, आदि की देवमनुष्य सुखभोगी प्राणियों, हार आदि आभरणों की देशविरति सहित तपोपधान, इभ्यपुत्र की मोक्ष के इच्छुक, परीक्षाकौशल की सम्यग्ज्ञान, रत्नजटित पादपीठ की सम्यग्दर्शन, रत्नों की महाव्रत और रत्नविनियोग की निर्वाण सुख से की गयी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002634
Book TitlePrakrit Jain Katha Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages210
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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