SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८७ सोचा था कुछ, हुआ कुछ ! वसुभूति नाम का एक दरिद्र ब्राह्मण अध्यापन का काम करता था। उसकी भार्या का नाम था यज्ञदत्ता । उसके सोमशर्म नाम का पुत्र और सोमशर्मा नाम की पुत्री थी । उसकी गाय थी रोहिणी । किसी धर्मात्मा ने उसे खेती करने के लिए थोड़ी-सी जमीन दे दी । इस जमीन में उसने शालि बो दिये। एक दिन उसने अपने पुत्र से कहा-बेटा ! मैं शहर जा रहा हूँ। चन्द्रग्रहण लगने वाला है । साहूकारों से दान-दक्षिणा माँग कर लाऊँगा । मेरे पीछे तू खेत की रखवाली करना । खेत में जो शालि पैदा होंगे और मैं जो कुछ रुपयापैसा माँगकर लाऊँगा, उससे तेरी और तेरी बहन की शादी कर देंगे। तबतक रोहिणी भी बिया जायेगी। यह कहकर ब्राह्मण चला गया । एक दिन गांव में कोई नट आया । सोमशर्म नटी के संसर्ग से नट बन गया। सोमशर्मा को किसी धूर्त से गर्भ रह गया । रोहिणी का गर्भ गिर गया । खेती की देखभाल न होने से शालि सूख गये । उधर ब्राह्मण को भी कुछ प्राप्ति न हुई । वह खाली हाथ घर लौटा । ब्राह्मणी दीन-हीन दशा में बैठी दिखायी पड़ी। ब्राह्मणी ने उठकर उसका स्वागत किया । ब्राह्मण ने पूछा- यह सब क्या ? ब्राह्मणी ने उत्तर दिया-हमारा भाग्य ही ऐसा है । सोचा कुछ था और हुआ कुछ !' पारखी इभ्यपुत्र किसी नगर में एक रूपवती गणिका रहती थी। उसके पास अनेक धनाढ्य राजपुत्र, मन्त्रीपुत्र और इभ्यपुत्र आते और धन-सम्पति लुटाकर लौट जाते । उन्हें बिदा देते समय गणिका कहती-यदि आप मुझे छोड़कर जा ही रहे हैं तो कम-सेकम मुझ निर्गुनिया की याद के लिए कुछ तो लेते जायें। १. सालीरुत्तो तणो जातो, रोहिणी न वियाइया सोमसम्मो नडो जाओ, सोमसम्मा वि गम्भिणी ॥ वसुदेवहिंडी, पृ. ३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002634
Book TitlePrakrit Jain Katha Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages210
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy