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________________ १. वह हाथ हंडी में लगा । हंडी फूट गयी और सारा दूध बिखर गया !' एक व्यापारी कोई वणिक् माल की बहुत-सी गाड़ियाँ भरकर सार्थ के साथ व्यापार के लिए चला । एक खच्चर पर उसने उपयोगी समझकर कुछ पण (एक छोटा सिक्का) लाद लिये थे । ऊबड़-खाबड़ मार्ग पर चलने के कारण खच्चर की झूल फट गयी और पण जमीन पर बिखर गये । यह देखकर वणिक् ने माल की गाड़ियाँ रोक दी और लोगों को पणों को चुगने के लिए कहा । वहाँ से कुछ मार्गदर्शक जा रहे थे। उन्होंने कहा-आप लोग कौड़ी के लिए करोड़ों का क्यों नुकसान कर रहे हैं ? गाड़ियों को आगे जाने दें । क्या आप को चोरों का डर नहीं है ? वणिक् ने उत्तर दिया भविष्य की कौन जाने ? जो मौजूद है, उसे तो पहले ले लें । ___ व्यापारी आगे बढ़ गये । वणिक् पीछे रह गया । उसका माल चोरों ने लूट लिया। व्यवहारभाष्य और वृत्ति, उद्देश ३. २९. पृ. ८अ । पंचतंत्र (अपरीक्षित कारक) में मन के लड्डू खाने वाले सोमशर्मा के पिता की कहानी आती है । सत्तू के घड़े को देखकर वह सोचता है-अकाल पड़ने पर सत्तू का यह घड़ा सौ रुपये में बिकेगा । उससे बकरियां आयेंगी, फिर गायें, भैसें, घोड़ियाँ और घोडे हो जायेंगे । घोड़े बेचकर सोना, सोने से चौमजला मकान बनेगा । फिर विवाह होगा। पुत्र का जन्म होगा । पुस्तक पढ़ने में वह बाधा डालेगा । पुत्र के पढ़ने में बाधा डालने के कारण वह अपनी ब्राह्मणी को मारने के लिए लात उठाता है और सत्त का घड़ा फूट जाता है । तथा देखिए भवदेवसूरि कृत पार्श्वनाथचरित (२. १०२५. २६) विनोदात्मककथा संग्रह कथा ३३; धम्मपद-अदठकथा, पृ० ३०२, हितोपदेश (४. ८)। यह कथा विश्व कथा साहित्य में पाई जाती है। वसुदेवहिंडी, पृ. १५ । यहाँ वणिक् की तुलना विषयसुख के लोभ के वशीभूत, मोक्षसुख के साधनों की उपेक्षा कर संसार में रचे-पचे मनुष्य से की गयी है। ऐसा मनुष्य पश्चात्ताप का भागी होता है । आवश्यकचूर्णी पृ. २७२ में भी यह कहानी आती है । धनदेव वणिक् पांच सौ गाड़ियाँ माल भरकर चलता है। रास्ते में वेगवती नदी पार करते समय एक बैल थककर वहीं गिर पड़ता है । धनदेव उसके सामने घास-चारा और पानी रखकर आगे बढ़ जाता है । पंचतंत्र (मित्रभेद) में वणि पुत्र वर्धमानक संजीवक और नन्दक नामक दो बैलों को रथ में जोड़, व्यापार के लिए मथुरा रवाना होता है । संजीवक यमुना नदी पार करते हुए दलदल में फंस जाता है । वर्धमानक तीन रात उसके पास बैठा रहता है । तत्पश्चात् वहाँ से जाने वाले व्यापारियों के कहने पर संजीवक के लिए रखवाले नियुक्त कर आगे बढ़ता है। कालान्तर में संजीवक की पिंगलक सिंह से मित्रता हो जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002634
Book TitlePrakrit Jain Katha Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages210
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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