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________________ अन्य कहानियाँ पर्वत और मेघ ____ एक बार पर्वत और मेघ में वाक्युद्ध ठन गया। मेध-मैं तुझे अपनी एक जरासी धार में बहा सकता हूँ, तू समझता क्या है ? पर्वत-यदि तू मुझे तिलभर भी हिला दे तो मेरा नाम पर्वत नहीं । यह सुनकर मेघ को बहुत क्रोध आया । वह लगातार सात दिन और सात रात मूसलाधार जल की वृष्टि करता रहा। उसने सोचा-अब देखता हूँ पर्वत कहाँ जायेगा ? अब तो उसके होशहवाश ठिकाने आ जायेंगे । लेकिन सुबह उठकर देखा तो पर्वत और उज्ज्वल होकर चमक रहा था।' शेखचिल्ली एक बार किसी भिखारी को बहुत भूख लगी । वह एक गोशाला में गया जहाँ ग्वालों ने उसे सकोरा भरकर दूध पिलाया । दो-चार दिन बाद वह फिर गोशाला में पहुँचा । अब की बार ग्वालों ने उसे हंडी भरकर दूध दिया। भिखारी हंडी को सिरहाने रखकर लेट गया । वह सोचने लगा--इस दूध का दही जमाऊँगा । दही बेचकर मुर्गी खरीदूंगा । मुर्गी अण्डे देगी । अण्डे बेचकर बकरी मोल लँगा । बकरी बेचकर गाय खरीदूंगा । गाय से बहुत से बैल हो जायेंगे । बैल बेचकर बहुत-सा धन कमा लँगा । धन को व्याज पर चढ़ा दूंगा और सेठ बन जाऊँगा । मेरा विवाह हो जायेगा । छमछम करती घरवाली आयेगी। यदि वह कभी अपमान करेगी तो मारपीटकर उसकी अक्ल ठिकाने लगा दूँगा। खाट पर लेटे-लेटे भिखारी ने जो 'घरवाली' को मारने के लिए हाथ उठाया, बृहत्कल्पभाष्य ३३४ और वृत्ति (आवश्यक नियुक्ति १३९; तथा आवश्यकचूर्णी, पृ० १२१; आवश्यक हारिभद्रीयवृत्ति (पृ० १००) भी देखिये। यहाँ शैल को ऐसा शिष्य बताया है जो गर्जन-तर्जन करते हुए आचार्य के समीप शास्त्र का एक पद भी नहीं सीखना चाहता । आचार्य लज्जित होकर बैठ जाता है । आवश्यक नियुक्ति १३९ में शिष्यों को शैल, कुट, छलनी, परिपूणक (घो-दूध छानने का छन्ना), हंस, महिष, मेष, मशक, जोख, बिलाड़ी, सेही भेरी और आभीरी के समान बताया है। देखिये जगदीशचन्द्र जैन, जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज पृ० २८८-९१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002634
Book TitlePrakrit Jain Katha Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages210
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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