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लात खाकर उसका पति अपनी प्रिया के पैर दबाते हुए कहने लगा-- प्रिये ! तुम्हारे पैर में कहीं चोट तो नहीं लग गयी !
__ कन्या ने अपनी माँ से यह बात कही । माँ ने उत्तर दिया-बेटी ! तू निश्चित रह, तेरा पति तेरा गुलाम बनकर रहेगा ।
____मंझली कन्या ने भी ऐसा ही किया । उसके पति ने लात खाकर पहले तो अपनी पत्नी को बुरा-भला कहा, लेकिन शीघ्र ही शान्त हो गया ।
माँ ने कहा--बेटी ! तू भी आराम से रहेगी, चिन्ता मत कर ।
अब सबसे छोटी कन्या की बारी आई । पति ने लात खाकर उसे पीटना शुरू किया, और वह उसके कुल को अपशब्द कहने लगा।
माँ ने कहा—बेटी तुझे ! सब से श्रेष्ठ पति मिला है। तू उसकी आज्ञा में सदा रहना और उसका साथ कभी न छोडना ।'
नाइन पंडिता कोई नाइन खेत में भोजन लिये जा रही थी। रास्ते में चोरों ने उसे पकड़
लिया।
वह बोली- चलो, अच्छा ही हुआ, मुझे भी आप लोगों की तलाश थी।
लेकिन इस समय तो आप मुझे जाने दें । रात को मेरे घर आइए, आपके साथ रुपये लेकर चलेंगी।
रात के समय जब चोर उसके घर में घुसे तो नाइन ने उनकी नाक काट ली। चोर डरकर भाग गये ।
अगले दिन चोरों ने फिर उसे खेत में जाते हुए देखा । चोरों ने नाइन को पकड़ लिया । उन्हें देखते ही वह अपना सिर पीटने लगी और बोली-अरे ! यह किसने काट ली ?
नाइन उनके साथ चल दी।
आगे चलकर चोरों ने उसे एक कलाल के घर बेच दिया । रुपये लेकर वे चम्पत हुए ।
नाइन वहाँ से आकर रात में एक वृक्ष पर छिपकर बैठ गयी। चोर भी संयोगवश उसी वृक्ष के नीचे आकर ठहरे। मांस पकाकर वे खाने
लगे।
१. बृहत्कल्प भाष्य २६२ और वृत्ति ; आवश्यकचूर्णी , पृ. ८१ अप्रशस्त भावोपक्रम का यह
दृष्टान्त है । आवश्यक, हारिभद्रीय टीका, पृ. ५५ ।
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