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________________ किसी जंगल में एक सिंह रहता था । हरिण का मांस उसे बहुत अच्छा लगता था । प्रतिदिन वह हरिण मारकर खाता । ८२ खरगोश और सिंह एक दिन जंगल के सब हरिण मिलकर जंगल के राजा के पास पहुँचे । उन्होंने निवेदन किया - महाराज ! हम लोग प्रतिदिन जंगल में से एक प्राणी आपके भोजन के लिए भेजेंगे, कृपा कर हमारी रक्षा करें । सिंह ने स्वीकृति दे दी । उसे अब घर बैठे शिकार मिलने लगा । एक बार एक बूढे खरगोश की बारी आई । जब खरगोश सिंह के पास पहुँचा तो सूर्योदय हो चुका था । सिंह ने गरज कर पूछा- रे दुष्ट ! इतनी देर कहाँ था ? खरगोश ने डरते-डरते उत्तर दिया- "महाराज ! जब आपके पास आ रहा था, रास्ते में मुझे एक दूसरा सिंह मिल गया । उसने पूछा ---- कहाँ जा रहे हो ? मैंने कहा - जंगल के राजा के पास । वह बोला - क्या ? जंगल के राजा के पास ? मेरे सिवाय जंगल का राजा और कौन है ? मैंने निवेदन किया - महाराज ! यदि मैं उसके पास न जाऊँगा तो वह मुझे और मेरे साथियों को मार डालेगा " । खरगोश की बात सुनकर सिंह आग-बबूला हो गया । वह बोला - बता, वह दुष्ट कहाँ रहता है ? मैं उसे अभी मजा चखाता हूँ । वह खरगोश के साथ चल दिया । कुछ दूर चलने पर खरगोश ने एक कुएँ की ओर इशारा किया -- महाराज ! वह यहीं रहता है । देखिए, आप कुएँ पर बैठकर गर्जना कीजिए । आपकी गर्जना का उत्तर वह प्रतिगर्जना से देगा । गया है । Jain Education International सिंह को निश्चय हो गया कि अवश्य ही वह डर के मारे कुएँ में उतर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002634
Book TitlePrakrit Jain Katha Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages210
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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