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इस समय घण्टी की अवाज करता हुआ गीदड़ वहाँ से गुजरा । सिंह ने उसके पास जाकर देखा तो पता लगा कि गीदड़ है । सिंह ने दबोच कर उसे मार डाला।'
लालची गीदड़ किसी भील ने जंगल में एक हाथी देखा । उसे देखकर वह एक विषम प्रदेश में खड़ा हो गया।
जब उसने देखा कि उसके बाण के प्रहार से हाथी गिर पड़ा है, तो वह डोरी चढे हुए धनुष को नीचे रख, हाथ में फरसा ले, हाथीदांत और उसके गंडस्थल के मोती लेने के लिए हाथी पर प्रहार करने लगा।
लेकिन हाथी के गिरने से दबे हुए महाकाय सर्प से डसे जाने के कारण वह गिर पड़ा।
उधर घूमते-फिरते हुए एक गीदड़ की नजर मरे हुए हाथी, मनुष्य, सर्प और धनुष पर पहुँची । वह डरकर पीछे हट गया । लेकिन लोलुपता के कारण वहाँ बार-बार आकर झांकने लगा।
थोड़ी देर बाद उन सबको निर्जीव समझ, निश्शंक, और सन्तुष्ट हो वह सोचने लगा
हाथी को तो मैं जीवन-भर खा सकता हूँ, मनुष्य और सर्प से कुछ समय के लिए मेरा काम चल जायेगा, इसलिए पहले मैं क्यों न धनुष की डोरी खाकर पेट भरूँ?
यह निश्चय कर जब उसने धनुष की डोरी चबाना शुरू किया तो धनुष की कोटि छिटक कर उसके तालू में लगी और वह वहीं ढेर हो गया । १. बृहत्कल्पभाष्य ७२१-२३ और वृत्ति, पीठिका, पृ० २२१ । देखिए सीहचम्मजातक (१८९),
दद्दभजातक (३२२); और पंचतंत्र की वाचाल रासभ कथा (४. ७)। २. वसुदेवहिंडी, पृ० १६८-६९ । उपदेश के रूप में यहाँ कहा गया है कि जो इंद्रियजन्य
सुख में प्रतिबद्ध होकर परलोकसाधन में निरपेक्ष रहता है, वह गीदड़ की भाँति मरण को प्राप्त होता है । आवश्यकचूर्णी, पृ० १६८-६९। पंचतंत्र (मित्रसंप्राप्ति) में यह कहानी आती है । यहाँ जंगली सूअर द्वारा पेट फाड डालने से भील की मृत्यु होती है । सूअर भी भील का बाण लगने से मर जाता है । साँप का नाम यहाँ नहीं है । हितोपदेश, मित्रलाभः और कथासरित्सागर भी देखिए; तथा मूल सर्वास्तिवाद का विनयवस्तु, पृ० १२१-२२ । ११
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