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________________ सिंह अपने प्रतिद्वंदी को मजा चखाने के लिए कुएँ में कूद पड़ा !' बन्दर और बया किसी बया ने एक वृक्ष पर सुन्दर धोसला बनाया । एक बार की बात है, वर्षा ऋतु में ठंडी हवा चलने लगी और मूसलाधार पानी बरसने लगा । इस समय वहाँ वर्षा से बचने के लिए ठण्ड से काँपता हुआ एक बन्दर आया । अपने घोंसले में बैठी हुई बया कहने लगी-ऐ बन्दर ! तू जरा मेर घोंसले को देख । कितने परिश्रम से मैंने इसे बनाकर तैयार किया है। कितने सुख से मैं यहाँ रहती हूँ। न मुझे वर्षा का डर है और न हवा का । रे मूर्ख ! मुझे तुझपर दया आती है कि तेरे हाथ पाँव होते हुए भी, आलस्य के कारण तू कुछ नहीं कर सकता । वर्षा की तीक्ष्ण बौछारें सहने के लिए तू तैयार है और ठण्डी हवा के थपेड़े सहना तुझे मंजूर है, लेकिन थोड़ी-सी मेहनत से अपना घर तू नहीं बना सकता ! पहले तो बन्दर बया की बातें चुपचाप सुनता रहा । लेकिन बया जब अपनी बात को बार-बार कहती गयी तो वह कूदकर वृक्ष की डाल पर पहुँचा । उसने वृक्ष की उस डाल को जोर से हिलाया जिस पर बया का घोंसला लटका हुआ था। क्षणभर में बया अपने घोंसले में से जमीन पर आ गिरी । घोंसले को तोडकर उसने हवा में उड़ा दिया । बया से वह कहने लगा-प्यारी बया ! अब तू मेरे १. व्यवहारभाष्य ३. २९-३० और वृत्ति पृ. ७ अ । तुलनीय हितोपदेश (मित्रभेद); शुक सप्तति (३१) के साथ । निग्रोधजातक तथा कथासरित्सागर भी देखिए । मलाया के जंगलवासियों में इस प्रकार की कथा प्रचलित है। डब्ल्यू. स्कीट, फेबल्स एण्ड फोकटेल्स, कैम्ब्रिज, १९०१, कहानी नं. १२, पृ० २८, डाक्टर प्रभाकर नारायण कवठेकर, संस्कृत साहित्य में नीतिकथा का उद्गम एवं विकास, पृ.३३९ फुटनोट । यह कहानी अफ्रीका की हब्शी जाति की लोक कथाओं में भी पाई जाती है । सिंह खरगोश का पीछा करता है। खरगोश रास्ते में एक चट्टान के नीचे खड़ा होकर चिल्लाने लगता है-"सिंह ! मेरे दादाजी! यह देखिए, यह चट्टान हम लोगों पर गिरी जा रही है । कृपया इसे संभालिए" । सिंह चट्टान को संभालने खड़ा हो जाता है और खरगोश भाग जाता है। इसे चट्टान 'मोटिफ' कहा गया है। स्टैण्डर्ड डिक्शनरी ऑफ फोकलोर, माइथोलोजी एण्ड लीजेण्ड, जिल्द२, मारिया लीच, न्यूयार्क, १९५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002634
Book TitlePrakrit Jain Katha Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages210
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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