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यह कहकर उसने पत्ते का आश्रय लेने की कोशिश की तो वह नदी में गिर पड़ा।
दूसरे पण्डित ने उसके बाल खींचकर उसे बचाने की कोशिश करते हुए कहा'सर्वनाश उपस्थित होने पर पंडित लोग आधी वस्तु को छोड़ देते हैं' .. ( सर्वनाशे समुत्पन्ने अर्धं त्यजति पण्डितः )' अतएव इसे छोड़ देना ही ठीक होगा ।
यह सुनकर दूसरे पंडित ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया । आगे चलकर किसी गांव में उन्हें भोजन का न्यौता मिला । पहले पंडित को भोजन में घी और खांड की सेवइयाँ मिलीं । उसने सोचा'लम्बे सूतवाला नष्ट हो जाता है' (दीर्घसूत्री विनश्यति)। वह भोजन छोड़कर चल दिया ।
दूसरे पंडित को मांड़े मिले । उसने सोचा-'जो लंबा-चौड़ा और विस्तार वाला होता है, वह बहुत दिन नहीं जीता' (यदतिविस्तार विस्तीर्णं तद् भवेन्न चिरायुषं)।
वह भी भोजन छोड़कर चला गया ।
तीसरे पंडित को बाटियाँ मिलीं । उसने सोचा---'छिद्रों में अनर्थ बहुत होते हैं ' (छिद्रेष्वना बहुली भवन्ति)।
वह भी बिना भोजन किये चला गया । २ तीनों पंडित भूखे-प्यासे लौट आये !
४. बुद्धिचमत्कार की कहानियाँ निम्नलिखित कहानियों में बुद्धि का चमत्कार लक्षित होता है । इस प्रकार की अनेक लोकजीवन की कथाएँ प्राचीन काल में प्रचलित थीं । शिष्यों का संवाद
किसी सिद्धपुत्र के निमित्तशास्त्रवेत्ता दो शिष्य थे। एक बार वे घास-लकड़ी लेने जंगल में गये । वहाँ उन्हें हाथी के पाँव दिखाई दिये।
पहला शिष्य-ये पाँव हथिनी के होने चाहिए ।
दूसरा शिष्य- तुमने कैसे जाना ? १. श्लोक का उत्तरार्ध ।
अर्धेण कुरूते कार्य सर्वनाशो हि दुःसहः ।। २. पांचवां तंत्र, कथा ४ ।
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