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उस समय नगर के बनिये का लड़का मर गया था । उसका क्रिया-कर्म करने के लिए लोग उसे श्मशान ले जा रहे थे ।
पहले पंडित ने पोथी - पुस्तक देखकर कहा - जिस रास्ते से बहुत लोग जायें, उसी रास्ते से जाना चाहिए । ( महाजनो येन गतः स पन्थाः) । ' चारों पंडित महाजनों के साथ चल पड़े ।
श्मशान में पहुँचकर उन्हें एक गधा दिखायी दिया ।
दूसरे पंडित ने पुस्तक देखकर कहा -- उत्सव होने पर, कोई दुख आ पड़ने पर, अकाल पड़ने पर, शत्रुजन्य संकट उपस्थित होने पर, राजद्वार पर और श्मशान में जो साथ रहता है, वह बन्धु है ( यस्तिष्ठति स बान्धवः) *
तीसरे पंडित ने पुस्तक देखकर कहा
धर्म की गति त्वरित होती है (धर्मस्य त्वरिता गतिः), अतः निश्चय ही यह धर्म होना चाहिये ।
चौथे पंडित ने कहा — बिल्कुल ठीक कहा आपने । लेकिन 'इष्ट वस्तु को धर्म के साथ जोड़ देना चाहिये' ( इष्टं धर्मेण योजयेत् ) । *
यह सुनकर सबने उस गधे को ऊँट के गले से बांध दिया ।
धोबी को जब पता लगा तो वह उन्हें मारने दौड़ा। चारों ने भागकर जान बचायी ।
आगे चलने पर रास्ते में एक नदी पड़ी ।
नदी में पलास के पत्ते को तैरते देख एक पंडित ने कहा- - यह आने वाला पत्ता हमें पार उता देगा ।
१.
२.
श्मशान में रहने के कारण यह गधा हमारा बन्धु होना चाहिए ।
इसपर कोई गधे को गले से लगाने लगा और कोई उसके पांव धोने लगा । इस समय उन्हें एक ऊँट दिखायी दिया ।
३.
४.
श्रुतिर्विभिन्ना स्मृतयश्च भिन्ना, नैको मुनिर्यस्य वचः प्रमाणम् । धर्मस्य तत्त्वं निहितं गुहायां महाजनो येन गतः स पन्थाः ॥ उत्सवे व्यसने चैव दुर्भिक्षे शत्रुविग्रहे ।
राजद्वारे श्मशाने च यस्तिष्ठति स बान्धवः ॥ क्षणं चित्तं क्षणं वित्तं क्षणं जीवति मानवः । यमस्य करुणा नास्ति धर्मस्य त्वरिता गतिः ॥ सत्कुले योजयेत् कन्यां पुत्रं विद्यासु योजयेत् । ब्यसने योजयेच्छत्रु इष्टं धर्मेण योजयेत् ॥
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