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________________ ६८ मूर्ख शिष्य किसी नगर में कोई जटाधारी रहता था । वृद्ध होने के कारण वह ऊँचा सुनने लगा था। एक दिन उसने अपने शिष्य को बुलाकर कहा कि उसे ठीक सुनाई नहीं पड़ता, इसलिए किसी वैद्य के पास जाकर वह बहिरापन दूर करने की औषधि ले आये। शिष्य वैद्य के घर पहुँचा तो वह बाहर से लौटकर आया था । बाहर जाते समय वह अपने जेठे लड़के से उसके छोटे भाई को पढ़ाने के लिए कह गया था । बैद्यजी के पूछने पर जेठे लड़के ने जवाब दिया---पिताजी ! मैंने उससे पढ़ने के लिए बहुत कहा, पर वह सुनता ही नहीं। वैद्यजी को बहुत गुस्सा आया। उन्होंने अपने छोटे लड़के को बुलाकर बहुत मारा । वैद्यजी उसे मारते जाते और बीच-बीच में कहते जाते—तू सुनता है कि नहीं ? शिष्य खड़ा हुआ यह सब देख रहा था । उसने सोचा कि बहिरापन दूर करने की उत्तम औषधि उसके हाथ लग गई है। वह भागा-भागा गुरुजी के पास पहुँचा । गुरुजी को हाथ से पकड़कर उसने जमीन पर गिरा दिया और उन्हें थप्पड़ों और घूसों से मारने लगा। बीचबीच में वह कहता जाता-अभी भी आप सुनते हैं या नहीं ? शिष्य द्वारा गुरु को पिटता हुआ देखकर बहुत-से लोग इकट्ठे हो गये। उन्होंने शिष्य से गुरु को मारने का कारण पूछा । उसने उत्तर दिया-बहिरापन दूर करने की यह सर्वोत्तम औषधि है और यह औषधि वैद्यराज ने उसे बतायी है।' मूर्ख पंडित की कहानी यह कहानी पंचतंत्र की है किसी नगर में चार ब्राह्मण रहते थे। चारों कन्नौज में विद्याध्ययन कर स्वदेश लौट रहे थे । कुछ दूर चलने पर दो रास्ते दिखायी दिये । चारों बैठकर सोचने लगे-- कौनसे रास्ते से गमन करना ठीक होगा ? मलधारी राजशेखर सूरि, विनोदकथासंग्रह कथा २६ । ३० वॉ कथा में व्यवहार में अकुशल चार विद्वानों की कहानी है। भरटद्वात्रिंशिका में भी इस तरह की कथा आती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002634
Book TitlePrakrit Jain Katha Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages210
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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