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आगे चलने पर उसे एक कैदी दिखाई दिया। उसके पैरों में बेड़ी पड़ी थी और जेल के सिपाही उसे पकड़कर ले जा रहे थे।
उसने कहा—ऐसे प्रसंग बहुत-से आये मैं हमेशा यही देखू । __ कैदी ने कहा- ऐसे समय कहना चाहिए कि तुम शीघ्र ही बंधन से मुक्त हो जाओ।
कुछ दूर चलने पर बहुत-से मित्र आते हुए दिखायी दिये । उसने कहा-आप शीघ्र ही बंधन से मुक्त हो जायें। उसे फिर अपमानित होना पड़ा । अब की बार उसने एक ठाकुर के घर नौकरी कर ली । एक दिन ठकुराइन ने उसे ठाकुर साहब को भोजन के लिए बुलाने भेजा।
ठाकुर साहब कुछ मित्रों के साथ बैठे गपशप कर रहे थे । लड़के ने दूर से सन्देशा दिया-चलिए ठाकुर साहब ! ठकुराइन भोजन के लिए बुला रही हैं।
ठाकुर ने घर आकर उसे समझाया -देखो, जब दो आदमी बैठे हों तो ऐसी बात धीरे से आकर कान में कहनी चाहिए ।
एक दिन ठाकुर के घर में आग लग गयी । ठाकुराइन ने लड़के को जल्दी से ठाकुर को खबर देने को कहा।
लड़का ठाकुर के पास पहुँचा और धीरे से कान में कहा-ठाकुर साहब ! चलिए, ठकुराइन बुला रही हैं। घर में आग लग गयी है ।
ठाकुर ने कहा--मूर्ख ! ऐसे समय घर छोड़कर नहीं जाना चाहिए, वहीं रहकर पानी, गोबर, मढे और दही से जिस तरह भी हो, आग बुझानी चाहिए।
एक दिन सर्दी के मौसम में ठाकुर साहब स्नान करके आ रहे थे । उनके शरीर में से भाप निकल रही थी। लड़के ने समझा कि ठाकुर के शरीर में आग लग गयी है। वह पानी, गोबर, मटे, दही और गोमूत्र, जो भी उसके हाथ लगा, उसे ठाकुर के शरीर पर फेंकने लगा।' १. आवश्यक नियुक्ति १३३; मलयगिरिकृत बृहत्कल्पभाष्यवृत्ति, पीठिका, पृ० ५३-५४ ।
आवश्यकचूर्णी, (पृ० ११०-११) और आवश्यक हारिभद्रीय वृत्ति (पृ. ९.) भी देखिये । 'दो हजार बरस पुरानी कहानियाँ' (प्रथम संस्करण) में 'अक्ल बड़ी या भैंस' कहानी। इस प्रकार की अन्य कहानियों के लिए देखिए बृहत्कल्पभाध्य ३७२ और वृत्ति, पृ. ११० में पंडित और वैयाकरणी की कहानी; 'दो हजार बरस पुरानी कहानियाँ' (प्रथम संस्करण), में 'मूर्ख बड़ा या विद्वान' कहानी, मूर्ख वैद्यराज की कथा के लिए देखिए, वृहत्कल्पभाष्य ३७६ और वृत्ति, पृ० १११-१२; 'दो हजार बरस पुरानी कहानियाँ (द्वितीय संस्करण) में 'वैद्यराज या यमराज' कहानी ।
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