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________________ माँ — नौकरी | बालक- मैं भी नौकरी करूँगा । माँ – तू अभी छोटा है, नौकरी करना तेरे बस की बात नहीं । लड़का- -माँ ! मुझे बता, नौकरी कैसे की जाती है । माँ – देख, नौकरी करने वाले को नम्रतापूर्वक व्यवहार करना चाहिए, मालिक का जय-जयकार करना चाहिए, मालिक की आज्ञांनुसार चलना चाहिए । और क्या ? लड़का अपनी माँ के चरणों का स्पर्श कर नौकरी के लिए चल दिया । किसी जंगल में कुछ शिकारी हरिणों की घात लगाये बैठे थे । उन्हें देखकर लड़के ने दूर से जय-जयकार किया । शिकारियों का खेल बखेल हो गया । उन्होंने समझाया - मूर्ख ! ऐसे समय शोरगुल न मचाकर, चुपचाप दबे पांव आना चाहिए । आगे चलने पर उसे कपड़े धोते हुए धोबी दिखायी दिये । धोबियों के कपड़े चोरी चले जाते थे और चोर का पता लगता नहीं था । ६६ लड़का धोबियों की ओर चुपचाप दबे पांवों जाने लगा । उन्होंने उसे चोर समझकर पीटा । धोबियों ने कहा डालने से सफाई आती है । - खार कुछ दूरी पर किसान खेत में बीज बो रहे थे । उसने वही कहाडालने से सफाई आती है । न आयें । - ऐसे समय दबे पांव न आकर कहना चाहिए कि खार उसकी फिर कुटाई हुई । - किसानों ने कहा- ऐसे समय कहना चाहिए कि ऐसे ही और भी हों । आगे चलने पर उसे शव को ले जाते हुए कुछ लोग दिखाई दिये । चिल्लाकर वह कहने लगा – अरे, ऐसे और भी हों । उन लोगों ने कहा - मूर्ख ! ऐसे समय कहना चाहिए ऐसे प्रसंग कभी - Jain Education International कुछ दूरी पर एक बारात मिली । उसने दुहराया — ऐसे प्रसंग कभी न आयें । बारातियों ने समझाया -- ऐसे समय कहना चाहिए कि ऐसे प्रसंग बहुत-से आयें और हमेशा मैं यही देखूं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002634
Book TitlePrakrit Jain Katha Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages210
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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