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किसी ने ठीक ही कहा है
सुख की इच्छा रखने वाले गुरु को मूर्ख शिष्य नहीं बनाना चाहिए । बाटी के भक्षक शिष्य की भाँति वह अत्यंत विडम्बना पहुँचाता है।'
तेरहवीं कहानी में स्वर्ग की गाय की कहानी आती है । यह गाय रात्रि के समय स्वर्ग से उतरकर भूलोक पर आ जाया करती और प्रातः काल होने पर अपने स्थान को लौट जाती । लोगों को स्वर्ग में जाने की इच्छा हुई । उसकी पूंछ पकड़ कर वे जाने लगे । लेकिन मार्ग में हाथ के इशारे से स्वर्ग के लहू का परिमाण बताने की लालसा से, पूंछ छूट जाने से, सब लोग नीचे गिरकर मर गये ।
सोलहवीं कहानी एक जटाधारी शैव-उपासक की है। एक बार उसने अपने शिष्य को बाजार से घी और तेल लाने के लिए कहा । धूपदानी में उसने एक तरफ घी और दूसरी तरफ तेल ले लिया। वापिस लौटकर वह गुरु के पास आया । गुरु ने पूछा-घी और तेल ले आये ? शिष्य ने गुरु के सामने ही पात्र को एक बार सीधा और एक बार औंधा करके दिखा दिया । घी और तेल दोनों जमीन पर गिर गये ।
कथासरित्सागर में नरवाहनदत्त का विनोद करने के लिए उसका विज्ञ मंत्री गोमुख अनेक मुग्ध कथाएँ सुनाता है । इनमें अगर जलाने वाले वैश्य की कथा, तिल बोने वाले मूर्ख कृषक की कथा, मूर्ख गडरिए की कथा, मूर्ख रुईवाले की कथा, केशमूर्ख की कथा, नमक खाने वाले मूर्ख की कथा, मूर्ख गोदोहक की कथा, तैलमूर्ख की कथा, मूर्ख वण्डाल कन्या की कथा, मूर्ख राजा की कथा, मूर्ख सेवक की कथा, 'कुछ' न माँगने वाली की कथा; ब्राह्मण और धूर्ती की कथा, मूर्ख सेवकों की कथा, अपूपमुग्ध की कथा, महिषीमुग्ध की कथा आदि अनेक सुग्धकथाएँ उल्लेखनीय हैं।
प्राकृत कथा साहित्य की एक कहानी देखिये--- मूर्ख लड़का
किसी स्त्री का पति मर गया था। उसके एक लड़का था। लड़के ने माँ से पूछा–माँ ! पिताजी क्या करते थे ?
मूर्खशिष्यो न कर्तव्यो गुरुणा सुखमिच्छता ।
विडम्बयति सोत्यन्तं यथा वटकभक्षकः ॥ यह कहानी विश्व कथा-साहित्य में अन्यत्र भी पायी जाती है। ३. देखिए, दशमलंबक, पंचम तरंग १. देखिए, दशम लंबक, षष्ठ तरंग
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