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________________ ६२ उसने अपने मित्र की एक मूर्ति बनवाई और दो बंदर पाले । प्रतिदिन वह उस मूर्ति पर बंदरों के खाने की चीजें रख देता और बन्दर मूर्ति पर चढ़ सब खा जाते। एक दिन उसने अपने मित्र के लड़कों को निमंत्रित किया । लड़कों को खाना खिलाकर कहीं छिपा दिया । __जब लड़के समय से घर न पहुँचे तो उनके पिता को बड़ी चिन्ता हुई । लड़कों का पता लगाने वह अपने मित्र के घर आया । सच्चे मित्र ने उस मूर्ति की जगह अपने मित्र को बैठाकर उस पर बन्दर छोड दिये । बन्दर किलकिलाहट करते हुए उसके साथ खेलने-कूदने लगे। अपने मित्र से उसने कहा-लो ये रहे तुम्हारे लाडले! कपटी मित्र- अरे, कहीं लड़के भी बन्दर बनते हुए सुने गये हैं ? सच्चा मित्र-और खजाना ! क्या कभी खजाना कोयला हुआ है ?' दो बनिये एक बार किसी वणिक ने शर्त लगायी कि जो माघ महिने की शीत में रात्रि के समय पानी के अन्दर बैठा रहेगा, उसे एक हजार दिनारें मिलेंगी। एक बूढ़ा बनिया तैयार हो गया । रातभर पानी में बैठे रहकर अगले दिन जब वह अपना इनाम मांगने गया तो वणिक ने पूछा - "अरे भाई, तुम रातभर इतनी सर्दी में बैठे रहकर कैसे जिन्दा निकल आये?" “सेठजी ! एक घर में दीपक जल रहा था। उसे देखते हुए मैं सारी रात पानी में बैठा रहा" --बूढे बनिये ने उत्तर दिया । वणिक्—तो तुम इनाम के हकदार नहीं हो। जलते हुए दीपक को देखकर तुम पानी में रहे न ? ___ बनिया निराश होकर घर लौट आया । एक दिन उसने बहुत से लोगों को दावत के लिए निमंत्रित किया। उस वणिक् को भी निमंत्रित किया गया । १. आवश्यकचूर्णी, पृ० ५५१ । 'दो हजार बरस पुरानी कहानी' (द्वितीय संस्करण में) 'दो मित्रों की कहानी' । मिलाइये, पंचतंत्र, मित्रमेद की 'धर्मबुद्धि और पापबुद्धि' तथा 'जीर्णधन बनिया' कहानियों के साथ । तथा देखिये शुकसप्तति (३९, ५०) कथासरित्सागर (प्र० ३१५). कटवाणिज जातक । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002634
Book TitlePrakrit Jain Katha Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages210
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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