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एक दिन नगर के बाहर एक वृक्ष पर काठ की भाँति निश्चेष्ट बैठे हुए पक्षी की ओर चन्दन की नजर गई । उसने देखा कि जब वृक्ष के सब पक्षी अपने दाने-पानी के लिए बाहर चले जाते तो वह चुपके से उनके घोंसलों में घुस उनके अण्डे-बच्चों को चट कर जाता !
एक दिन उसे भुजा लटकाये ध्यानमग्न एक साधु दिखायी दिया ! वहाँ एक राजकुमारी आई। साधु ने पहले तो उसे उपदेश दिया और बाद में उसका हार निकाल उसे गड्ढे में मार कर फेंक दिया ! __ चन्दन विचार करने लगा
जैसा ढोंगी यह पक्षी है और दंभी यह साधु है; वैसी ही कहीं मेरी पत्नी और यह ब्राह्मण भी तो नहीं ?' प्रवंचक मित्रों की कहानी
_ विश्वासपात्र बनकर ठगने वाले वंचक मित्रों की कहानियाँ समराइच्चकहा, कुवलयमाला आदि जैन कथा ग्रंथों में मिलती हैं । मायादित्य और थाणु की कथा का उल्लेख किया जा चुका है । कपटी मायादित्य ने अपने मित्र थाणुको ठगने का प्रयत्न किया लेकिन सफलता न मिली। कपटी मित्र
एक बार की बात है, दो मित्रों को कहीं से एक खजाना मिला । दोनों ने सोचा कि शुभ मुहूर्त में इसे निकालकर घर ले जायेंगे। लेकिन एक दिन कपटी मित्र ने चुपचाप खजाना निकाल कर उसके स्थान पर कोयले रख दिए ।
___ जब दोनों खजाना निकालने आये तो कपटी मित्र कहने लगा-क्या करें भाई साहब ! अपना भाग्य ही ऐसा है, देखो खजाने के कोयले बन गये !
सच्चा मित्र कुछ नहीं बोला । १. बालेन चुम्बिता नारी, ब्राह्मणो शीर्ष हिंसकः । काष्ठीभूतो वने पक्षी, जीवानां रक्षको व्रतो ।। आश्चर्याणीह चत्वारि मयापि निजलोचनैः । दृष्टान्यहो ततः कस्मिन् विश्रब्धं क्रियतां मनः ॥ मलधारि हेमचन्द्र (१२ वीं शताब्दी), भवभावना। 'रमणी के रूप', में 'विश्वासपात्र कौन' ?
कहानी । २. कुवलयमाला. पृ० ५८-५९ । मिलाइए पंचतंत्र, मित्रभेद की धूर्त और चार ब्राह्मणों की
कहानी के साथ ।
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