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________________ इनमें से : एक जुलाहे का स्वर बहुत मधुर था । अपने मधुर स्वर से वह गाया करता था । जुलाहे की लड़की उसका गाना सुनकर मोहित हो गयी। धूर्त ने कहा-चलो, कहीं भाग चलें। जुलाहे की लड़की ने उत्तर दियामेरी सखी एक राजकुमारी है। हम दोनों ने निश्चय कर रखा है कि हम एक ही पुरुष से विवाह करेंगी। धूर्त -तो उसे भी बुला लो । __ जुलाहे की लड़की ने अपनी सखी के पास समाचार भिजवाया । वह आ गयी ! तीनों चल दिए । _इतने में किसी ने एक गाथा पढ़ी-'हे आम्र ! यदि कणेर के वृक्ष फूल गये हैं तो वसंत के आने पर तुझे फूलना योग्य नहीं । यदि नीच लोग कोई अशोभन कार्य करने के लिए उतारू हो जायें, तो क्या तू भी वही करने लगेगा ?'' यह सुनकर राजकुमारी सोचने लगी--अरे ! ठीक तो है । यदि यह जुलाहे की लड़की इसके साथ जा रही तो क्या मुझे भी उसका अनुकरण करना चाहिए ? ___ यह सोचकर अपनी रत्नों की पिटारी लेने के बहाने वह राजमहल में लौट गयी। चार ढोंगी चन्दन की पत्नी अपने नवजात शिशु को इसलिए स्तनपान नहीं कराती थी कि ऐसा करने से परपुरुष के स्पर्शदोष से उसके शीलभंग हो जाने को आशंका थी। कोई धर्मात्मा ब्राह्मण दर्भ हाथ में लिए जल द्वारा मार्ग का सिंचन कर रहा था । जब वह चंदन की दुकान पर आया तो कहीं से उड़कर एक तिनका उसके सिर पर आ गिरा। चंदन ने उसे हटाना चाहा, लेकिन धर्मात्मा ने यह कहकर मना कर दिया कि वह तिनके की चोरी के अपराध में अपना सिर ही घड से अलग कर देगा ! १. जह फुल्ला कणियारया चूयय । अहिमासयमि पुदठमि । तुह न खमं फुल्लेउं जइ पच्चंता करिति डमराई ॥ २. आवश्यकचूर्णी २. पृ० ५६ । आवश्यक हारिभद्रीय टीका, पृ० ५५६ । आवश्यक नियुक्ति १२३९ में दो कलाओ के उदाहरण में उल्लिखित । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002634
Book TitlePrakrit Jain Katha Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages210
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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