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देखिए, मेरी पत्नी वृक्षों के झुरमुट में लेटी है। प्रसव-वेदना से वह पीड़ित है यदि थोड़ी देर के लिए अपनी पत्नी को उसके पास भेज दें तो कृपा हो।
युवक ने अनुमति दे दी। युवक की पत्नी वृक्षों में झुरमुट में कंडरीक के पास पहुँची। वहाँ से लौटकर मूलदेव को उसने बधाई दी कि उसके बेटा हुआ है ।
तत्पश्चात् मूलदेव को पगड़ी उछाल अपने पति को लक्ष्य करके उसने निम्नलिखित दोहा पढ़ा
खडी गड्डीबइल तुहुँ, बेटा जायां ताह ।
रण्णि वि हुंति मिलावडा, मित्तसहाया जांह ॥' तुम्हारी गाड़ी और बैल खड़े हैं। उसका बेटा हुआ है। जिसके मित्र सहायक होते हैं, उसका अरण्य में भी मिलाप हो जाता है। धूर्त जुलाहा
किसी नगर में कोई जुलाहा रहता था। उसकी दुकान पर कुछ धूर्त जुलाहे कपड़े बुना करते थे। १. तुलनीय शुकसप्तति (५९) की ‘राहडभूलडं' इत्यादि गाथा से ।।
उपदेशपद , और वादिदेवसूरिकृत टीका, गाथा ९२, पृ ६४; आवश्यकचूर्णी, पृ० ५४९ में भी यह कहानी मिलती है । शुकसप्तति (१) में इस प्रकार की कथा है । यहाँ विष्णु नामक ब्राह्मण, मार्ग में चलते हुए पति के वृक्षोंकी आड़ में जाने पर, उसकी पत्नी के साथ संभोग करता है और उसके साथ गाड़ी में बैठकर चल देता है । उपदेशपद (गाथा ९३, पृ. ६४) में कोई व्यंतरी गाड़ी में जाते हुए किसी पुरुष की स्त्री का रूप बना उसके साथ गाड़ी में बैठकर जाती है । भोजदेव की शृङ्गारमंजरी में मूल देव को धूर्त, अतिविदग्ध, सर्व पाखण्डों का ज्ञाता, सकल कलाकुशल, वंचक और प्रतारक के रूप में उल्लिखित किया है। स्त्रियों के सम्बन्ध में शंकाशील होने के कारण वह अपना विवाह नहीं कराता था। सोमदेव के कथासरित्सागर में भी मूलदेव का आख्यान आता है। वेतालपंचविंशतिका (कथा १३, कथा २२) भी देखिए । उत्तराध्ययन की टीकाओं में पाटलिपुत्र के राजकुमार और उज्जैनी की प्रसिद्ध गणिका देवदत्ता का विस्तृत आख्यान उपलब्ध है। बृहत्कल्पभाष्य ७६० और निशीथभाष्य २०. ६५१७ भी देखिये । हितोपदेश में तीन धूर्तों और ब्राह्मण की कहानी आती है।
कोई ब्राह्मण बकरे को अपने कन्धे पर उठाये ले जा रहा था । इन धूर्तो ने उसे ऐसा चकमा दिया कि बिचारा अपने बकरे को कुत्ता समझ उसे छोड़ कर चल दिया। जगदीशचन्द्र जैन , हितोपदेश, संधि, पृ० ११७ । पंचतंत्र के तीसरे तन्त्र में भी यह कहानी आती है। तथा देखिये प्रबंधचिंतामणि, पृ. १३६ । शिव और माधव नामक
। कथा के लिए देखिए, कथासरित्सागर, पाँचवां लंबक प्रथम तरंग ।
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