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________________ ५७ मणि के समान जीवन यापन करते हैं । पक्षियों के नवजात शावकों की भाँति इनका देश एवं काल अज्ञात रहता है, इनके मुख चंचल होते हैं, और पंगु होते हुए भी ये फुदकते फिरते हैं । जैसे मार्जार पक्षिशावकों को हजम कर जाते हैं, वैसे ही धूर्त भोले-भाले लोगों को चट कर जाते हैं ' धूर्तों को चतुर्मुख कहा गया है - मिथ्या आडम्बर से वे धनी बन जाते हैं, पुस्तकों के पंडित होते हैं, कथाओं के ज्ञानी होते हैं, वर्णन में शूर होते हैं और बड़े चपल होते हैं। यदि किसी स्त्री का पति परदेश गया हुआ हो तो दृष्ट अथवा अदृष्ट, क्रूर और कृत्रिम वचनपूर्ण मुद्राओं द्वारा धूर्त पुरुष उस मुग्ध वधू का अपहरण कर लेते हैं। स्तेयशास्त्रप्रवर्तक धूर्तशिरोमणि मूलदेव' अपने शिष्यों को दंभ और धूर्तविद्या १. धूर्तकरकन्दुकानां वारवधूचरणनूपुरमणीनाम् । धनिकगृहोत्पन्नानां मुक्तिर्नास्त्येव मुग्धानाम् ॥ अज्ञातदेशकालाश्चपलमुखाः पङ्गवोऽपि सप्लुतयः । नवगा इव मुग्धा भक्ष्यन्ते धूर्तमार्जारेः ॥ तुलना कीजिए सोमदेव के यशस्तिलकचम्पू (भाग २, पृ० १४५ ) के वर्णन से - धूर्तेषु मायाविषु दुर्जनेषु स्वार्थैकनिष्ठेषु विमानितेषु । - कलाविलास १.१८, १९ वर्तेत यः साधुतया स लोके प्रतार्यते मुग्धमतिर्न केन ॥ मिथ्याडम्बरधनिकः 'पुस्तकविद्वान्' कथाज्ञानी । वर्णनशूर इचपलश्चतुर्मुखो जृम्भते धूर्तः ॥ २. ३. ४. ५. दृष्टाभिरदृष्टाभिः क्रूराभिः कृतकवचनमुद्राभिः । धूर्तो मुष्णाति वधूं मुग्धां विप्रोषिते पत्यौ ॥ देखिए, जगदीशचन्द्र जैन का " आजकल," अगस्त, मूलदेव और धूर्तविद्या' नामक लेख । ८ क्षेमेन्द्र ने मूलदेव के मुँह से दंभ का प्ररूपण कराते हुए उसके तीन मुख्य मेद बताये हैं- बकदंभ, कूर्मजदंभ और मार्जारदंभ । व्रत-नियम धारण करके बगुले के समान आचरण रख कछुए के समान आचरण करने गुप्त रखकर मार्जार के समान नियमों करने वाला बकदंभी, व्रतनियमों को आच्छादित वाला कूर्मजदंभी तथा अपनी गति और नेत्रों को को गोपनीय रखनेवाला घोर मार्जारदंभी है— Jain Education International - कलाविलास, ९. 199 — वही, ९.५९ १९७० में प्रकाशित 'धूर्त शिरोमणि व्रतनियमे कदम्भः संवृत्तनियमैश्च कूर्मजो दम्भः । निभृतगति नयन नियमैर्घोरो मार्जारजो दम्भः ॥ For Private & Personal Use Only कलाविलास, १ ४८ www.jainelibrary.org
SR No.002634
Book TitlePrakrit Jain Katha Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages210
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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