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इतित्तिरी अर्थात् (१) गाड़ी में लटके हुए पिंजड़े की तीतरी, (२) अथवा गाड़ी और तीतरी) कैसे बेचते हो ?
किसान ने उत्तर दिया- एक कार्षापण में
गंधीपुत्रों ने उसे कार्षापण दे दिया और उसकी अनाज से भरी गाड़ी और तीतरी लेकर चल दिये ।
किसान को बड़ा दुःख हुआ कि एक कार्षापण में उसकी अनाज भरी गाड़ी और तीतरी दोनों ही चल दिये ।
किसान न्यायालय में गया, लेकिन हार गया ।
मालिक ! अनाज
कुछ दिनों बाद गंधीपुत्रों के घर जाकर वह कहने लगासे भरी हुई मेरी गाड़ी तो चली ही गयी, अब इन बैलों को रखकर मैं क्या करूँगा । इन्हें भी आप ही रख लें । इनके बदले मुझे सिर्फ दो पायली सत्तू दे दें । लेकिन यह सत्तू मैं सर्वालंकार भूषित आपकी प्राणेश्वरी के हाथ से ही ग्रहण करूँगा । गंधीपुत्र ने किसान की बात स्वीकार कर ली ।
गंधीपुत्र की प्राणेश्वरी ज्यों ही सत्तू देने आयी, किसान उसका हाथ पकड़ कर चल दिया ।
पूछने पर उसने उत्तर दिया- - मैं तो दो पायली सत्तू ले जा रहा हूँ ।' कमलसेना ने चंपा नगरी में प्रवेश करते समय धम्मिल्ल को यह दृष्टांत देते हुए कहा था- आर्यपुत्र ! पुर, नगर और जनपदों में प्रायः वंचक लोग बसते हैं, आप सावधान होकर जायें । कहीं ऐसा न हो कि जैसे क्रय-विक्रय के समय धूर्त नागरिकों ने गांव के सीधे-साधे किसान को ठग लिया था, वैसे ही आपको भी लोग ठग लें । "
धूर्तों से सावधान रहने की आवश्यकता
क्षेमेंद्र (११ वीं शताब्दी) ने लिखा है- - धनवान कुल में पैदा हुए, दुनियादारी के ज्ञान से वंचित भोले-भाले लोग, धूर्तों के हाथ में ऐसे ही नाचते हैं जैसे कि हाथ की गेंद । ये लोग वारवनिताओं के चरणों के नुपूर में लगी हुई
१.
२.
वसुदेवहिंडी, पृ० ५७-५८
वसुदेव ने जब भद्रिलपुर के जीर्णोद्यान में प्रवेश किया, उस समय भी अंशुमान ने अपने मित्र को सावधान रहने को कहा, क्योंकि अज्ञात नगरों में अतिदुष्ट लोग रहते लेते हैं । वसुदेवहिंडी, पृ० २०९
हैं, जो भले आदमियों को ठग
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