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कथाकोशों की रचना
आगमोत्तरकालीन साहित्य में अनेक लोकप्रिय कथाग्रंथों और कथाकोषों की रचना की गयी। तरंगवईकहा, वसुदेवहिंडी, समराइच्चकहा और कुवलयमाला के अतिरिक्त अनेक महत्त्वपूर्ण कथाकोष लिखे गये । इनमें जिनेश्वरसूरि का कहाणयकोस (कथानककोष), नेमिचन्द्रसूरिकृत कथामणिकोश (आख्यानकमणिकोष), गुणचन्द्रगणि (देवभद्रसूरि के नाम से प्रख्यात) कृत कहारयणकोस (कथारत्न कोष), विनयचन्द्रकृत धम्मकहाणयकोस (धर्मकथानककोश), भद्रेश्वरकृत कहावलि, पद्मचन्द्रसूरि के अज्ञातनामा शिष्यकृत पाइयकहासंगह आदि उल्लेखनीय हैं ।' इन कथाकोषों में विविध विषयों पर धर्मकथाओं का संग्रह है जिनमें मंत्रविद्या, सर्पविष उतारने की विधि, दैवी आराधना से पुत्रोत्पत्ति, संगीत, अभिनय, सास-बहू का कलह, गृहकलह, राजसभाओं में वाद-विवाद, धातुवाद, उत्सव, चर्चरी-प्रगीत आदि के साथ पर्वत को यात्रा, खन्यविद्या (जमीन में गड़े हुए धन का पता लगाना), हाथियों की व्याधि, हाथियों को पकड़ने की विधि, परिवार की दारिद्रयपूर्ण स्थिति, मल्लयुद्ध, चोरों का उपद्रव, ठगविद्या, धूर्तविद्या, युद्ध, खेती, बनिज-व्यापार, शिल्पकला आदि लौकिक विषयों से संबंध रखने वाले अनेक रोचक आख्यानों का संग्रह है। आख्यानों को रोचक बनाने के लिए बीच-बीच में चित्रकाव्य, सुभाषित, उक्ति, कहावत, संवाद, गीत, प्रगीत, प्रहेलिका, प्रश्नोत्तर, वाक्कौशल आदि शैलियों का प्रयोग किया गया है ।
___२. धूतौ और पाखंडियों की कथाएँ लौकिक कहानियों में हम सर्वप्रथम धूर्ती, पाखंडियों, ठगों और मक्कारों संबंधी कथाओं को लें। ये कहानियाँ जैन प्राकृत कथा-ग्रंथों में यत्र-तत्र बिखरी पड़ी हैं । इनका उद्देश्य था समाज-विरोधी तत्वों का भंडा-फोड़ कर धूर्तों आदि के चंगुल से स्वरक्षा करना।
___ गांव का कोई किसान गाड़ी में अनाज भरकर शहर में बेचने जा रहा था। उसकी गाड़ी में तीतरी का एक पिंजड़ा बंधा हुआ था। नागरिकों द्वारा ठगाया गया ग्रामीण
शहर पहुँचनेपर गंधीपुत्रों ने उससे पूछा—यह गाड़ी-तीतरी (प्राकृत में सग१. प्राकृत एवं संस्कृत के कथाकोषों के विवरण के लिए देखिए, हरिषेण, बृहत्कथाकोश,
डाक्टर ए० एन० उपाध्ये की भूमिका, पृ० ३९ आदि
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