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________________ ५४ श्रोताओं के प्रकार अर्थ, काम, धर्म और संकीर्ण कथाओं के श्रोता अधम, मध्यम और उत्तम के भेद से तीन प्रकार के होते हैं । जो क्रोध आदि के वशीभूत हों; इस लोक में ही आस्था रखने वाले, जीवदयारहित अनर्थबहुल अर्थकथाओं के श्रवण में आनन्द लेते हों ऐसे तामस वृत्ति वाले अधम श्रोता हैं । शब्द आदि विषयों में मोहित बुद्धियुक्त, "यह सुन्दर है और यह इससे भी सुन्दर है" - इस प्रकार की अस्थिर मतिवाले, पंडितजनों द्वारा उपहास के योग्य और विडम्बना मात्र ऐसी कामकथाओं में आनन्द लेने वाले राजसी वृत्ति के लोग मध्यम श्रोता हैं । इहलोक और परलोक में सापेक्ष, व्यवहार नय में कुशल, परामर्थ की अपेक्षा सार विज्ञान से हीन, क्षुद्र, भोगों को बहुत न मानने वाले, उदारभोगों में तृष्णा रहित, सात्विक मनोवृत्ति वाले, त्रिवर्ग का निरूपण करने वाली तथा तर्क, हेतु और उदाहरण युक्त संकीर्ण कथा में रस लेने वाले श्रोताओं को भी मध्यम कोटि में ही गिना गया है । तथा जाति, जरा, मरण से वैराग्य को प्राप्त, कामभोगों से विरक्त, सकलकथाओं में श्रेष्ठ महापुरुषों द्वारा सेवित धर्मकथा में रस लेने वाले सात्विक श्रोताओं को उत्तम कहा गया है ।' धार्मिक कथा - साहित्य कहा जा चुका है कि जनकल्याणकारी लोकप्रिय धर्म और नीति-संबंधी कथाओं द्वारा जनसमूह का मार्ग-प्रदर्शन करना ही इन कथाओं का उद्देश्य रहा है । इस संबंध में आगमकालीन कथा - साहित्य में ज्ञातृधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृद्दशा, विपाकसूत्र आदि आगम ग्रंथों का नामोल्लेख किया जा सकता है । ज्ञातृधर्मकथा में ज्ञातृपुत्र महावीर द्वारा प्ररूपित धर्मकथाओं का संग्रह है । विभिन्न उदाहरणों, दृष्टांतों एवं लोकप्रचलित कथाओं के माध्यम से यहाँ संयम, तप और त्याग का उपदेश दिया गया है । उपाशकदशा में महावीर के दस उपासकों और अन्तकृदशा में अर्हतों की कथाएँ हैं । विपाकसूत्र में शुभ और अशुभ कर्मों के विपाक संबंधी कथाएँ दी हुई हैं । उत्तराध्ययन नामक मूल सूत्र में उपमा, दृष्टांत और विविध संवादों द्वारा धर्मकथामूलक त्याग और वैराग्य का वर्णन है । आगम ग्रन्थों की नियुक्तियों, भाष्यों, चूर्णियों और टीकाओं में तो अनेकानेक धर्मकथाएँ संनिविष्ट हैं । समराइच्चकहा, पृ० ४-५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002634
Book TitlePrakrit Jain Katha Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages210
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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