________________
१. धर्म-कथाएँ काम और अर्थ के बाद धर्म आता है । धर्म के संबंध में कहा है-"धर्म से श्रेष्ठ कुल में जन्म होता है, दिव्य रूप और सम्पत्ति प्राप्त होती है, धन-समृद्धि मिलती है, कीर्ति का विस्तार होता है, अतुल मंगल की प्राप्ति होती है, समस्त दुःखों की यह अनुपम औषधि है, धर्म ही विपुल बल है, त्राण है और शरण है।' इसी धर्मकथा के संकल्पपूर्वक अवंतिराज समरादित्य के चरित का वर्णन करने के लिए समराइच्चकहा की रचना की गयी है। वसुदेवहिंडी में, जैसे कहा जा चुका है, शृङ्गार कथा के बहाने धर्मकथा का ही प्ररूपण है। कुवलयमाला में भी बीच-बीच में कामशास्त्र की चर्चा आती है, किन्तु धर्म प्राप्ति में सहायक होने से इस कथा को धर्मकथा (आक्षेपणी) समझ कर पढ़ने और गुनने का लेखक का
अनुरोध है।
धर्मप्राप्ति की मुख्यता
इस प्रकार हम देखते हैं कि जैन विद्वानों ने अपने कथा-ग्रंथों में धर्म को मुख्य मानकर ही आख्यान लिखे हैं। इतना अवश्य है कि कामकथा में काम
और अर्थकथा में अर्थ की प्रधानता रहती है, यद्यपि उद्देश्य इनका भी धर्म प्राप्ति ही है। धर्मकथा के भेद
धर्मकथा के चार भेद हैं- श्रोता के मन को अनुकूल लगने वाली कथाएँ (आक्षेपणी) श्रोता के मन को प्रतिकूल लगने वाली कथाएँ (विक्षेपणी), ज्ञान की उत्पत्तिपूर्वक संवेगवर्धक कथाएँ (संवेदिनी) और वैराग्य उत्पन्न करने वाली कथाएँ (निवेदनी । जिसमें धर्म उपादान रूप हों तथा क्षमा, मार्दव, आजव अलोभ, तप, संयम, सत्य, शौच आदि जन-कल्याणकारी व्रत-नियमों का वर्णन हो उसे धर्मकथा कहा गया है। १. धम्मेण कुलपसूई धम्मेण य दिव्वरूवसंपत्ती।
धम्मेण धणसमिद्धी धम्मेण सुवित्थडा कित्ती ॥ धम्मो मंगलमठलं ओसहमउलं च सव्वदुखाणं । धम्मो बलमवि विउलं धम्मो ताणं च सरणं च ॥
-समराइच्चकहा, पृ० ६ २. ८, ९, पृ० ४-५ ३. दशवकालिक नियुक्ति १९३-२०५, तथा हारिभद्रीय टीका, पृ. १०९अ-११३१ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org