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निष्कर्ष यह कि अटवी पार करते समय व्यापारियों को सिंह आदि का भय नहीं रखना चाहिए ।
मार्ग की थकान दूर करने वाली कथाएँ
" जैसे राजे-महाराजे कथा-कहानियों के शौकीन थे, वैसे ही दूर-दूर तक जल अथवा स्थलमार्ग से प्रवास करने वाले वणिक् यात्री रोचक कथाएँ सुनकर अपनी लम्बी मुसाफिरी सुखपूर्वक तय करते थे ।' अनेक व्यापारी तीर्थों तथा देश-देशांतर संबंधी कथाएँ कहने में निष्णात होते थे । इस संबंध में वसुदेव और अंशुमान का एक रोचक आख्यान आता है । चलते-चलते वसुदेव को थका हुआ जान, अंशुमान ने कहा- आर्य पुत्र ! क्या मैं आपको ले चलूँ? यदि नहीं, तो आप मुझे ले चलिए ।
वसुदेव ने सोचा थकान के कारण मेरे पैर लड़खड़ा रहे हैं, ऐसी हालत में अंशुमान मुझे कैसे लेकर चल सकता है ? यह राजपुत्र सुकुमार है, मैं ही इसे क्यों न ले चलूँ ? वसुदेव ने कहा- आओ मित्र ! चढ़ जाओ, मैं तुम्हें लेकर चलता हूँ । अंशुमान ने हँसकर उत्तर दिया- आर्यपुत्र ! इस तरह किसी को मार्ग में लेकर नहीं चला जाता । यदि कोई मार्गजन्य खेद के कारण थके-मांदे व्यक्ति को रोचक कथाएँ सुनाता चलता है, तो इसे ले चलना कहते हैं, इससे उसकी थकान दूर हो जाती है ।
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वसुदेव ने कहा यदि ऐसी बात है तो कोई रोचक कहानी सुनाओ। तुम्हीं इस कला में कुशल हो ।
संस्कृतियों का आदान-प्रदान
जैन धर्म का अनुयायी विशेषकर व्यापारी वर्ग था, अतएव इस वर्ग के उपदेशार्थ बनिज-व्यापार संबंधी कथाओं का धर्मकथाओं में समावेश किया जाना स्वाभाविक था । ये व्यापारी धनोपार्जन के लिए दूर देशों की यात्रा किया करते थे । निश्चय ही इससे उनके व्यावहारिक ज्ञान में वृद्धि होती थी । वस्तुतः बृहत्कथा लोकसंग्रह में मार्ग की क्लान्ति दूर करने के लिए रमणीय कथाएँ कहने का उल्लेख है
अथ मां रमयन्तस्ते रमणीयकथाः पथि । अगच्छन् कञ्चिदध्वानमचेचितपथक्लमम् वसुदेवहिण्डी, पृ० २३२
वही, पृ० २०८
१.
२. ३.
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।। १८.१८४ पृ० २३६
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