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________________ ४८ ने अपने पतिको विश्वास दिलाते हुए कहा-प्राणनाथ ! आप बिल्कुल भी चिंता न करें। ‘अग्नि शीतल हो सकती है, सूर्य पच्छिम में उग सकता है, मेरु का शिखर कंपायमान हो सकता है, पृथ्वी उछल सकती है, वायु स्थिर हो सकती है, समुद्र मर्यादा का उल्लंघन कर सकता है, लेकिन त्रिकाल में भी मेरा शील भंग नहीं हो सकता ।'' श्रेष्ठीपुत्र चन्द्र की पत्नी तारा अपने पुत्र के साथ मदन नामक सार्थवाह के जहाज में सवार हो सिंहलद्वीप के लिए रवाना हो गयी। मार्ग में जहाज फट जाने के कारण जहाज डूब गया । तारा किसी भील के हाथ पड़ गयी। उसने उसे अपनी पल्ली के स्वामी को भेंट में दे दी। पल्ली के स्वामी ने तारा के रूप पर मोहित हो उसे अपनी पत्नी बनाना चाहा । तारा ने उत्तर दिया-“देखिए, सिंह की जटाएँ, सतो-साध्वियों की जंघाएँ, शरण में आये हुए सुभट और सर्प के मस्तक की मणि को, बिना जान हथेली पर रक्खे प्राप्त नहीं किया जा सकता। कहा गया है कि देशाटन को गये हुए व्यापारियों की घर में रही हुई स्त्रियों की राजाओं को रक्षा करना चाहिए। यात्रागीत जान पड़ता है, वणिकपुत्रों के इन साहसिक यात्राओं संबंधी गीतों की रचना भी की गयी थी। गायिकाएँ इन गीतों को विश्वासपूर्वक गाकर श्रोताओं का मनोरंजन किया करतीं। एक गीत देखिए __ वणिकों का एक बड़ा सार्थ गणिम (गिनने योग्य), धरिम (तोलने योग्य), मेय (मापने योग्य) और परीक्ष्य (परखने योग्य) माल को लेकर अपने नगर से रवाना हुआ। बीच में एक अटवी पड़ी । यहाँ सिंह का भय था । अस्त्र-शस्त्र से सज्जित हो वणिक् वहीं ठहर गये । इतने में वहाँ सिंह आया । सब लोग भय से घबड़ा गये । फिर एक गीदड़ी आई । उसके साथ सिंह रतिकीड़ा करने लगा । वणिक् उसे मारने के लिए तैयार हो गये । लेकिन कुछ ने कहा-उसे मारने से क्या ? जो गीदड़ी के साथ सहवास कर सकता है, वह कैसा सिंह ? यह सुन सब निश्चिन्त होकर बैठ गये । कुमारपालप्रतिबोध; देखिए 'रमणी के रूप में 'शीलवती की चतुराई' कहानी, पृ० १४-२० तुलनीय वसुदेवहिंडी में ललितांग नामक सार्थवाहपुत्र की कथा, पृ. ९ । कुमारपालप्रतिबोध, देखिए 'रमणी के रूप' के अन्तर्गत 'रूपवती तारा', पृ. २१-२५। ३. वसुदेवहिण्डी, पृ० २३३ ४. वही, पृ० २८२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002634
Book TitlePrakrit Jain Katha Sahitya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1971
Total Pages210
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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